7 साल पूर्व
आयुर्वेद के अनुसार, अत्यधिक पसीना आने का कारण उच्च पित्त, वसायुक्त मेटाबोलिज्म, मानसिक स्थिति जैसे तनाव, चिंता आदि के साथ समस्याएं होना हैं। आयुर्वेद इस स्थिति के लिए कारण-आधारित उपाय प्रदान करता है।
अत्यधिक पसीने का आना कई व्यक्तियों के लिए एक व्यक्तिपरक मुद्दा है | स्वमं के परीक्षण से पहले आपको मौसम, कमरे के वेंटिलेशन, तनाव के स्तर पर नज़र रखने की आवश्यकता है | स्वमं का परीक्षण करने का सर्वोत्तम तरीका अन्य लोगों के साथ तुलना करना है |
चिकित्सकीय रूप से, अत्यधिक पसीना आने को हाइपरहाइड्रोसिस कहते हैं | यह पूरे शरीर या हथेलियों, तलवों आदि जैसे कुछ क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।
अत्यधिक पसीने के कारण :
यदि अत्यधिक पसीना आने का कोई अंतर्निहित चिकित्सिय कारण नहीं है, तो इसे प्राथमिक हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है। ऐसा तंत्रिका तंत्र ( नर्वस सिस्टम ) के कारण से होता है |
अगर पसीना किसी अंतर्निहित विकार के कारण आता है, तो इसे द्वित्यक हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है।
डायबिटीज, हार्ट अटैक, हाइपरथायरायडिज्म, रजोनिवृत्ति के निकट, मानसिक विकार से ग्रसित व्यक्तियों को आमतौर पर अधिक पसीना आता है |
आयुर्वेद के अनुसार अत्यधिक पसीना :
आयुर्वेद इस स्थिति को स्वेदाधिक्य के रूप में वर्णित करता है। स्वेदा का अर्थ पसीना एवं आधिक्य का अर्थ है अधिकता से है। आयुर्वेदा में, इस स्थिति को एक भिन्न रोग के रूप में वर्णित नहीं किया गया है किन्तु, कई संदर्भों में, यह जटिल रोगों की एक प्रमुख विशेषता के रूप में उल्लेखित किया गया है। विशेषकर ऐसे व्यक्ति जो पित्त के असुंतलन के कारण उत्पन्न विकारों से पीड़ित हैं, उनमें इसकी शिकायत सामान्य रूप से मिलती है |
पसीने को नियंत्रित करने हेतु - टिप्स एवं ट्रिक्स
♦ अपनी वास्तविक शक्ति से अधिक भारी व्यायाम से बचें | भारी व्यायाम अधिक पसीना आने का कारण बन सकता है, भले ही आप बिल्कुल स्वस्थ हो। आयुर्वेद के अनुसार, जब आप अपनी वास्तविक ताकत के आधे तक पहुंचते हैं तो आपको व्यायाम रोकना चाहिए। यह जांघों, माथे एवं बाहों पर अधिक पसीने, भारी श्वास जैसे लक्षणों से महसूस किया जा सकता है |
♦ यदि आपको अंडर आर्म व कॉलर के क्षेत्र में अधिक पसीना आता है तो अतिरिक्त पैडिंग उपयोगी रहती है |
♦ एक से अधिक रुमाल एवं सुगन्धित इत्र अपने पास रखें |
♦ सभागारों या किसी पब्लिक प्लेस में बैठते समय ऐसा स्थान चुने जहां हवा की व्यवस्था हो |
♦ नाश्ते या दोपहर के भोजन की अपेक्षा मसालेदार भोजन, लहसुन एवं प्याज का सेवन रात्रि के भोजन में करें जिससे कि दिन के समय पसीने की गंध से बचाव रहे |
♦ लहसुन और मसालेदार भोजन से अधिक पसीना आ सकता है उन्हें केवल मध्यम मात्रा में ही प्रयोग करें |
♦ काले रंग के कपड़े पहनने से बचें क्यूंकि काला रंग गर्मी को शोषित करता है जिस कारण अधिक गर्मी महसूस होती है |
♦ शुद्ध सफेद कपड़े पहनने से भी बचें क्यूंकि इस पर पसीने के दाग धब्बे सरलता से दिखाई देते हैं |
♦ ठन्डे पानी से स्नान करें |
♦ यदि आप रजोनिवृत्ति (35 वर्ष की आयु से ऊपर) के निकट आ रहे हैं, तो अधिक पसीना आना पेरी-मेनोपोज़ल सिंड्रोम नामक एक अवस्था, के लक्षण के रूप में हो सकता है। यदि ऐसा है तो पौष्टिक भोजन, फलों एवं सब्जियों का सेवन करें, जंक फ़ूड, बासी भोजन एवं वातित पेय से बचें |
♦ अतिरिक्त शराब के सेवन से बचें से बचें |
♦ जब भी आपको प्यास लगे तो अच्छी मात्रा में पानी पी लें यह आपको पसीने के कारण उत्पन्न निर्जलीकरण से बचाव करेगा |
♦ रात्रि में कम से कम 6-7 घंटे की निंद्रा लें |
अत्यधिक पसीने के लिए उपचार :
निम्नवत पसीने को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेद के अनुसार चार प्रकार के दृष्टिकोणो को समझाया है। वस्तुतः, निरीक्षण करने पर कई मामलों में यह परस्पर व्याप्त ( ओवरलैप ) करते हैं -
1. उच्च पित्त का इलाज करना
2. मेदो धातु का सुधार - वसा ऊतक भंडारण एवं मेटाबोलिज्म
3. तनाव एवं चिंता का समुचित उपचार
4. स्तम्भन - अस्पष्टीकृत अतिरिक्त पसीने के उपचार हेतु अवरुद्ध चिकित्सा का उपयोग
अत्यधिक पसीना आने की समस्या के उपचार हेतु चार उपाय :-
1. उच्च पित्त दोष का उपचार :
पित्त दोष गर्मी, पाचन, शरीर के तापमान, त्वचा के स्वास्थ्य एवं नेत्र के स्वास्थ्य के लिए उत्तरदायी है |
पित्त दोष से ग्रसित एवं पित्त युक्त देह वाले व्यक्ति से पसीने का स्राव स्वाभाविक रूप से अधिक होता है |
इस प्रकार का पसीना अधिक जलन, जलन का अहसास, त्वचा की नमी, चुभती - जलती गर्मी इत्यादि से जुड़ा होता है।
यह उच्च पित्त विकारों में भी पाया जाता है जैसे कि जठरशोथ ( गैस्ट्राइटिस ), माइग्रेन, रक्तस्राव संबंधी विकार जैसे कि अत्यार्तव ( मीनोरेजिया ), नाक से रक्त स्राव आदि |
उपचार : पित्त को शांत करने हेतु उपाय :-
♦ तेज धूप में बाहर जाते समय टोपी पहन कर जाएँ |
♦ रात में पानी में 10 किशमिश भिगोएं, अगली सुबह खाली पेट इनका सेवन करें |
♦ रात में एक कप पानी में 20 ग्राम धनिया भिगोएं, अगली सुबह छानने के बाद सेवन करें |
♦ एक चम्मच अमलाकी चूर्ण (आंवला पाउडर) का गुड़ या घी के साथ दिन में एक या दो बार सेवन करें |
♦ नियमित विरेचन पंचकर्म उपचार ( पार्गेशन थेरेपी ) लें |
2. वसा ऊतक संग्रहण में सुधार करना :
आयुर्वेद के अनुसार, पसीना को वसा ऊतक के अपशिष्ट उप-उत्पाद के रूप में करार दिया गया है।
अतः, शरीर में वसा ऊतकों को कम करने से पसीने के स्राव में कमी आती है।
उक्त प्रयोजन के लिए, आयुर्वेदिक औषधियों का उपयोग भी आवश्यक होता है | शरीर में वसा उत्तकों की मात्रा कम करने के लिए औषधियों का सेवन लाभकारी सिद्ध रहता है |
आयुर्वेद के अनुसार, वसा ऊतक अस्थि धातु को पोषण करता है। (यही कारण है कि, तिल का तेल, नारियल का तेल एवं घी का उपयोग अस्थि घनत्व में सुधार एवं गठिया से राहत प्रदान करता है)। मोटापे के कुछ मामलों में, मेदा धातु और हड्डी के ऊतकों के बीच के चैनल अवरुद्ध होते हैं। अतः,आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन इन अवरुद्ध चैनलों को खोलने में भी सहायक होता है, जिससे अतिरिक्त वसा वाले ऊतकों का अस्थि ऊतक में रूपांतरण हो जाता है |
3. तनाव प्रबंधन :
तनाव, भय और चिंता अत्यधिक पसीने से संबंधित हैं | यह शरीर के सामान्य शरीर क्रिया विज्ञान को गड़बड़ करते हैं |
कुछ टिप्स :
♦ चिंता एवं तीव्र व्यग्रता की स्थिति के समय धीरे-धीरे सांस लेने का प्रयास करें।
♦ प्राणायाम करें |
♦ खोपड़ी पर ब्रह्मी तेल या क्षीरबाला तेल के कुछ बूंदों को लेकर मालिश करें |
4. स्तम्भन चिकित्सा - रोकथाम चिकित्सा :
प्राइमरी हाइपरहाइड्रोसिस (जहां कारण ज्ञात नहीं है) की स्थिति में एवं अतिरिक्त स्थानीय पसीने की स्थिति में, जैसे कि हथेलियों और पैरों में ही अत्यधिक पसीना आना, में यह उपचार बहुत उपयोगी है।
इसमें पसीने के वाहकों को आंशिक रूप से अवरुद्ध कर दिया जाता है जिस कारण पसीने के स्राव में हानि होती है |
स्तम्भन उपचार की क्रिया विधि :
♦ स्नान करने से 1 घंटे पहले चन्दन के तेल का प्रयोग लाभदायक रहता है। शरीर पर बालों के विपरीत दिशा में इसे रगड़ना अधिक एवं लंबे समय तक लाभ देता है। तत्पश्चात, पहले गर्म पानी का स्नान व उसके बाद में ठन्डे पानी के स्नान की सलाह दी जाती है। यह दोषों से मुक्त करता है |
♦ कमल डंठल, सुपारी, बबूल आदि जैसी कैसैली जड़ी बूटियों का प्रयोग पसीने के अति स्राव में लाभ प्रदान करता है |
♦ सरीवा (हेमीडेस्मस इन्डिकस), चंदन, आमलकी, लोध्र (सिम्प्लोकॉस रेसमोसा), खदिरा एवं मुस्ता अथवा नागार्मोथा का चूर्ण बनाकर भली प्रकार मिलाएं | 25 ग्राम चूर्ण लें व इसमें लगभग 50 मिलीलीटर गुलाब जल डालकर भली प्रकार से लेप / पेस्ट बना लें | इस लेप को सम्पूर्ण शरीर पर लगाकर 5-20 मिनट के लिए छोड़ दें, तत्पश्चात ठंडे पानी से स्नान कर लें। इस उपचार से शरीर को ताज़गी प्राप्त होती हैं व पसीने की दुर्गन्ध में लाभ प्राप्त होता है |
पसीने को कम करने के लिए घरेलू उपचार :
♦ 2-3 मिलीलीटर (10-15 बूंद) चमेली का तेल अथवा लैवेंडर का तेल लें व इसमें 20 मिलीलीटर गुलाब जल को स्नान के पानी (ठंडे पानी) में मिला लें। इससे पसीने का स्राव व शरीर की दुर्गंद दोनों में कमी आती है |
♦ मुलैठी, आँवला, हरीतकी / हरड़, उशीर / ख़स एवं चन्दन प्रत्येक के 2-2 ग्राम चूर्ण को लें व इन्हे ठंडे पानी में मिलाकर प्रतिदिन दो बार पेय के रूप में सेवन करें | यह अत्यधिक पसीने एवं थकान में लाभ प्रदान करता है |
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