ज्योतिषशास्त्र : आयुर्वेदा

देसी गाय के घी के चमत्कारी लाभ, दुष्प्रभाव एवं उपचार

Sandeep Pulasttya

5 साल पूर्व

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आयुर्वेदा में गाय के घी को सबसे पवित्र, आध्यात्मिक एवं शारीरिक रूप से स्वास्थ्य प्रदाता लाभकारी पदार्थ बताया गया है | जो व्यक्ति डेयरी उत्पादों या ग्लूटेन से एलर्जी मानते हैं, उन्हें गाय के घी से एलर्जी नहीं होनी चाहिए। गाय के घी का उपयोग सेवन के साथ साथ त्वचा, नाक की बूंदों, एनीमा आदि के रूप में कई प्रकार से किया जा सकता है।

यहाँ, घी का तात्पर्य गाय का घी है | संयुक्त राज्य अमेरिका में गाय के घी को विशुद्ध मक्खन के रूप में भी जाना जाता है।

 

त्रिदोष पर प्रभाव :

घी वात एवं पित्त को शांत करता है, अतः यह वात एवं पित्त युक्त शरीर वाले व्यक्तियों के लिए आदर्श है | घी वात एवं पित्त के असंतुलन से होने वाले विकारों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए भी आदर्श है।

 

पाचन शक्ति पर घी का प्रभाव :

पित्त एवं अग्नि एक दूसरे से आंतरिक रूप से संबंधित हैं | आमतौर पर, पित्त को संतुलित करने वाले पदार्थ, पाचन अग्नि में कमी भी उत्पन्न करते हैं। किन्तु घी एक अपवाद है। यह पित्त दोष को संतुलित करता है किन्तु यह पाचन शक्ति को प्रबल करता है।

हालांकि, यह आव (परिवर्तित पाचन एवं मेटाबोलिज्म की स्थिति) में सहायता नहीं करता है। एक सामान्य व्यक्ति में, यदि पाचन शक्ति कुछ कम है, तो घी इसकी पाचन क्षमता में सुधार करने में उपयोगी है।

घी गुणों में दूध के समान ही है, परतु दूध के विपरीत, घी पाचन क्रिया में सुधार करता है।

 

घी के बहुमुखी स्वास्थ्य लाभ :

हर्बल रेक्टल सपोसीटोरिस, गुदा नलिका में प्रवेश से पूर्व घी के साथ लिप्त हो जाती हैं।

यह रसधातु (पचे हुए भोजन का सार भाग), शुक्रधातु (वीर्य) एवं ओजस के लिए अनुकूल है। इसका मानव देह पर ठंडा एवं नरम प्रभाव रहता है।

 

घी के क्रियान्वयन हेतु निर्देश :

हर्बल घी का सेवन उन व्यक्तियों के लिए निर्धारित किया जाता है-

♦   जो अच्छी दृष्टि चाहते हैं।

♦   जिनकी छाती (चेस्ट) घायल अवस्था में है।

♦   बूढ़े, बच्चों एवं कमजोर व्यक्तियों के लिए जो, दीर्घ अवधि के लिए शक्ति, अच्छे रंग रूप, आवाज, पोषण, संतान, कोमलता, चमक, प्रतिरक्षा, स्मृति, बुद्धि, पाचन शक्ति, ज्ञान, इंद्रियों की उचित कार्यप्रणाली की इच्छा रखते हैं एवं ऐसे व्यक्ति जिनकी देह, अग्नि, हथियार एवं विष के प्रभाव से ग्रस्त हैं |

♦   घी उन आहार सामग्री में से एक है, जिसका सेवन किसी भी समय किया जा सकता है।

♦   यह उपचार के कारण कमजोर हो जाने ववाले व्यक्तियों के लिए आवश्यक आहार सामग्री में से एक है।

♦   यह पाचन शक्ति में सुधार करने में सहायता प्रदान करता है।

♦   यह शरीर के ऊतकों को पोषण देता है, जो सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों के लिए उपयुक्त है।

♦   यह इंद्रियों की प्रतिरक्षा बढ़ाता है |

♦   यह वाणी के स्वर एवं शक्ति में सुधार करता है।

♦   यह दीर्घायु प्रदाता है।

♦   यह उन व्यक्तियों के लिए उपयोगी है जो मदिरा / शराब का निरंतर सेवन करते हैं |

♦   जो महिलाएं, युवा एवं बुजुर्ग नियमित व्यायाम करते हैं, उनके लिए उपयोगी है |

 

 

गाय घी

♦   गाय का घी स्मृति, बुद्धि, पाचन शक्ति, वीर्य, ओजस में वृद्धि करता है |

♦   यह वात, पित्त को कम करता है, विषाक्ता, पागलपन, दुर्बलता में यह अनुकूल प्रभाव प्रदान करता है |

♦   यह सभी मरहम के पदार्थों में से सबसे अच्छा है।

♦   इसकी तासीर शीतल होती है एवं स्वाद में मीठा होता है |

♦   निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार सेवन करने पर, यह शक्ति में हजार गुना बढ़ जाता है एवं कई गुना उपयोगिता विकसित करता है।

 

पुराना गाय घी :

एक वर्ष पुराना गाय का घी अत्यंत उपयोगी होता है | यह नशा, मिर्गी, झुकाव, उन्माद, स्किज़ोफ्रेनिया, पागलपन, अवशेष जहर, बुखार, कान में दर्द, सिर के साथ ही मादा जननांग मार्ग हेतु अत्यंत उपयोगी है।

 

वजन बढ़ाने हेतु घी का उपयोग :

घी ऐसे व्यक्तियों हेतु अत्यंत उपयोगी है जो, पतली देह वाले, शारीरिक दुर्बलता से ग्रस्त एवं शुष्क त्वचा वाले हैं | ऐसे व्यक्तियों को आहार के एक आवश्यक भाग के रूप में घी के नियमित सेवन का परामर्श दिया जाता है | जो व्यक्ति अपना वजन बढ़ाने की इच्छा रखते है उनके लिए घी का नितमित सेवन अत्यंत प्रभावी है |

 

सेक्स हेतु घी का उपयोग :

घी, शुक्रधातु (नर एवं मादा प्रजनन प्रणाली) की गुणवत्ता में सुधार हेतु अत्यंत उपयोगी है। अपने अत्यधिक पोषक स्वास्थ्य लाभों के साथ, इसके उपयोग का परामर्श ऐसे व्यक्तियों को किया जाता है जो, अत्यधिक अथवा दैनिक सेक्स क्रिया में सम्मलित रहते है |

 

शुष्कता से छुटकारा पाने हेतु घी का सेवन :

अत्यधिक शुष्क त्वचा, शुष्क आवाज एवं सम्पूर्ण देह पर सूखापन से पीड़ित व्यक्तियों को सर्दी के मौसम में दूध के साथ घी का सेवन, सूखापन से बहुत तेजी से छुटकारा पाने में सहायता प्रदान करता है |

 

ज्वर में घी का उपयोग :

ज्वर ठीक होने के पश्चात उत्पन्न होने वाली जलन की अनुभूति से छुटकारा पाने में घी का सेवन अत्यंत लाभकारी सिद्ध रहता है। किन्तु यहां यह स्पष्ट किया जा रहा है कि ज्वर से पीड़ित रहने  कि अवधि काल में घी के सेवन का परामर्श नहीं किया गया है | ज्वर, पूर्ण रूप से ठीक होने के पश्चात, शक्ति एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त करने हेतु घी के सेवन का परामर्श किया जाता है |

 

नवजात शिशु हेतु घी :

घी एवं दूध, जन्म से ही बच्चों के लिए अनुकूल हैं। नवजात शिशु को घी की 2 - 5 बूंदें पिलाने का परामर्श दिया जाता है |

स्तनपान कराने वाली मां को घी के सेवन करने का परामर्श दिया जाता है | आयुर्वेदा में यह माना गया है कि घी, स्तन के दूध में पौष्टिक गुणों को अधिक मजबूत कर देता है |

 

नेत्रों के लिए घी का उपयोग :

नेत्रों से सम्बंधित कई विकारों में घी का प्रयोग किया जाता है | 'नेत्र तर्पण' नामक प्रक्रिया में घी का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में बेसन के आटे को घी में गूंथकर उसकी एक मोटी पर्त बना ली जाती है व उस पर्त को नेत्र कक्षा के चारों ओर रोक के लिए लगा दिया जाता है | अब इसमें घी भर दिया जाता है व रोगी की नेत्र बार बार खोलने व बंद करने के लिए कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार यह प्रक्रिया आंखों की शक्ति में सुधार एवं मजबूती प्रदान करती है।

नेत्रों के उप्पर घी का प्रयोग करने से नेत्रों की दृष्टि बढ़ती है | घी का त्रिफला एवं शहद के साथ सेवन का परामर्श, नेत्रों के स्वास्थ्य में सुधार करने हेतु किया जाता है। नेत्रों को सुखदायक प्रभाव प्रदान करने हेतु घी से नेत्रों को धोने का परामर्श आयुर्वेदा में दिया गया है |

 

आयल पुलिंग ( तेल के कुल्ले ) के स्थान पर घी के ग़रारे करना :

आयल पुलिंग ( तेल के कुल्ले ) की विधि में, तिल के तेल के स्थान पर, गाय के घी का उपयोग अधिक प्रभावकारी सिद्ध है। यह मुँह के अल्सर को ठीक करने एवं जलन की अनुभूति से छुटकारा पाने में विशेष रूप से उपयोगी होता है। यह पित्त असंतुलन से उत्पन्न मौखिक विकारों में इंगित किया गया है।

मुँह के अल्सर को ठीक करने एवं मुख में जलन की अनुभूति से छुटकारा पाने में आयल पुलिंग ( तेल के कुल्ले ) की विधि में, तिल के तेल के स्थान पर, गाय के घी के ग़रारे करना अधिक प्रभावकारी सिद्ध है। यह पित्त असंतुलन से उत्पन्न मौखिक विकारों में इंगित किया गया है।

 

 

घी के विभिन्न प्रायोगिक उपयोग :

 

घी का एनीमा में उपयोग -

आयुर्वेदिक उपचार के अंतर्गत हर्बल रेक्टल सपोजिटरी, गुदा नलिका में डालने से पूर्व घी में डुबो कर प्रयोग की जाती है | घी का एनीमा, हड्डियों को मजबूत करने के लिए प्रयोग किया जाता है | आयुर्वेद के अनुसार, हड्डी को वसा से पोषण मिलता है | एनीमा के माध्यम से घी को प्रशासित कर, वात को संतुलित किया जाता है, जिससे हड्डी के ऊतकों की उचित पोषण प्राप्त होता है। हड्डी एवं वात परस्पर एक दूसरे से सम्बंधित हैं, अतः घी का एनीमा गठिया जैसे रोग की अवस्था में बहुत उपयोगी सिद्ध रहता है।

 

घी का हर्बल धूम्रपान में उपयोग -

आयुर्वेदा हर्बल धूम्रपान को दैनिक दिनचर्या के रूप में प्रयोग करने का परामर्श करता है। घी, आयुर्वेद हर्बल धूम्रपान प्रक्रिया में एक घटक के रूप में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।

 

घावों, खून के रिसाव एवं जलन की अनुभूति में घी की उपयोगिता -

♦   घी का बाहरी घाव के उपचार हेतु, लेपन के रूप में उपयोग, अत्यंत लाभप्रद रहता है |

♦   आधा कप घी, एक चाय का चम्मच हल्दी पाउडर एवं दो चम्मच नीम के रस के साथ पेस्ट बना, घावों एवं फोड़े पर उसका लेपन करने से त्वरित लाभ मिलता है | घाव भर जाते हैं एवं फोड़े फुंसी ठीक हो जाते हैं |

♦   जोक के काटने पर बहते रक्त एवं जलन की अनुभूति को समाप्त करने व उसके उपचार में घी का प्रभावित क्षेत्र पर लेपन करने से त्वरित लाभ मिलता है |

♦   घी का लेपन रक्त बहने वाले फोड़ों के उप्पर करने से फोड़ों से उत्पन्न घाव को तो शीतलता प्राप्त होती ही है साथ ही घाव भी शीघ्र भर जाता है |

♦   प्राचीन काल में, घी को पट्टी अथवा बत्ती बनाने में आधार स्वरुप किया जाता था जिसका प्रयोग शल्य प्रक्रियाओं के पश्चात स्थानीय अनुप्रयोग में किया जाता था।

♦   घी का उपयोग शल्य क्रिया में लगे टांकों के उपचार हेतु किया जाता था।

♦   आयुर्वेदा चिकित्सा प्रणाली के अंतर्गत बवासीर एवं भगन्दर के रोगी पर एक विशेष उपचार कर्म ( क्षारकर्म ) की प्रक्रिया के उपरान्त, उत्पन्न जलन एवं खुजली की अनुभूति से छुटकारा पाने में घी का उपयोग किया जाता है |

♦   घाव के उपचार में, घाव पर घी का लेपन उत्कृष्ट चिकित्सीय परिणाम प्रदान करता है |

♦   बच्चों में, कर्ण छेदन के समय, कान पर घी का लेपन, उत्पन्न होने वाले दर्द व जलन की अनुभूति को कम करने एवं छेदन की प्रक्रिया को सरल बनाने हेतु उपयोग किया जाता है |

♦   घी का फटे होंठों पर लेपन, नई माताओं के फटे कटे निप्पल एवं फटी एड़ियों के उपचार हेतु प्रयोग त्वचा को नरम बनाता है एवं कटे फटे अंगो को तीव्र गति से ठीक करता है |

♦   घी का त्वचा पर लेपन, त्वचा के सूखेपन को दूर करने एवं जलन की अनुभूति में लाभ प्रदान करता है |

 

घी के मनोवैज्ञानिक लाभ -

♦   घी का उपयोग उन व्यक्तियों हेतु अत्यंत उपयुक्त है जो समझ, बुद्धिमत्ता एवं तीव्र स्मृति की कामना रखते हैं |

♦   मस्तक पर घी का उपयोग दिमाग को शांत रखने में सहायक होता है।

♦   घी का सरसों एवं नीम के पत्तों के साथ मिश्रण धूमन प्राप्त करने हेतु किया जाता है | यह बुरी बलाओं को रोकने में सहायता प्रदान करता है |

 

घी का प्रयोग प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूती प्रदान करने हेतु -

♦   प्रतिरक्षा के प्रतिनिधित्व हेतु ओजस शब्द का प्रयोग किया जाता है। ओज में सुधार करने के लिए घी आवश्यक आहार सामग्री में से एक है।

♦   बढ़ती आयु को रोकने वाले पदार्थ स्वाभाविक रूप से प्रतिरक्षा में सुधार करते हैं। दूध के साथ घी का उपयोग सबसे अच्छा एंटी एजिंग आहार संयोजन माना जाता है।

 

आध्यात्मिक उद्देश्यों में घी का उपयोग -

♦   घी को बहुत शुद्ध और शुभ माना जाता है, इसलिए हिंदू प्रथा में, भोजन परोसते समय, भोजन पर घी की कुछ मात्रा उप्पर से छिडकी जाती है, जो दर्शाता है कि घी भोजन को शुद्ध करता है। इस पद्धति को "अभीघरा" के रूप में जाना जाता है |

♦   घी को आध्यात्मिक परंपराओं में प्रयोग किया जाता है जिसे "होम" कहा जाता है, जहां घी को अग्नि में प्रेषित किया जाता है। इस कार्य के संपादन हेतु, ईंधन के रूप में उपयोग के लिए उपलब्ध सभी स्रोतों में से केवल घी का ही उपयोग किया जाना, घी के महत्व की विशेषता बतलाता है |

♦   शास्रविधि के अनुसार प्रातः निंद्रा से उठने के बाद, घी में चेहरे को देखना मंगलसूचक माना गया है।

 

घी के घरेलू उपचार -

♦   प्रातः नाश्ते से पूर्व, एक चाय का चम्मच घी का सेवन मूत्राशय क्षेत्र की पीड़ा में शांति प्रदान करता है |

♦   मियादी बुखार के उपचार हेतु, घी के साथ लहसुन का आहार के रूप में सेवन करने की अनुशंसा की जाती है।

♦   आमला चूर्ण एवं किशमिश का घी के साथ मिश्रण बना उसे कुछ मिनटों के लिए मुंह के अंदर रखने से तालु एवं मुख के सूखेपन से छुटकारा मिलता है |

♦   हरीतकी (टर्मिनलिया चेबुला) के चूर्ण का घी के साथ सेवन करने से जलन की अनुभूति से छुटकारा मिलता है |

♦   एनीमिया के उपचार हेतु, घी में चीनी के साथ त्रिफला के काढ़े का सेवन अत्यंत उपयोगी होता है। यह यकृत की क्रियाप्रणाली में भी सुधार करता है |

 

नाक की एलर्जी से बचाव में घी का उपयोग -

घर से बाहर जाने से पहले, घी की एक पतली परत को नाक के भीतरी भाग पर लगाने का प्रयास करें। यह वास्तव में धूल व एलर्जी से बचाव में सहायक है।

 

उल्टी के लिए घी -

घी का उपयोग वात के प्रकार की उल्टी के उपचार हेतु किया जाता है, जो गड़गड़ाहट की ध्वनि एवं पेट दर्द के साथ होती है |

घी को डली वाले सेंधा नमक के साथ पकाकर यह नुस्खा, उलटी के साथ दिल की घबराहट अनुभव करने वाले रोगियों को दिया जाता है |

 

पंचकर्म की प्रारंभिक प्रक्रिया में घी का उपयोग -

पंचकर्म एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें असंतुलित दोषों को देह से बाहर निकाल दिया जाता है। पंचकर्म से पहले, घी की उच्च मात्रा रोगग्रस्त व्यक्ति को 1 से 7 दिनों के भीतर पीने के लिए दी जाती है। घी तीव्र क्षमता से देह के ऊतकों में भीतर तक प्रवेश करता है एवं देह में संचयित दोषों को अपने साथ लेकर आंतों तक में लाने में सहायता प्रदान करता है | जहां से पंचकर्म प्रक्रिया द्वारा इसे बाहर निष्कासित कर दिया जाता है।

 

स्वास्थ्य की स्थिति के लिए घी -

घी में अपने भीतर निहित प्राकर्तिक गुणवत्ता को छोड़े बिना, जड़ी बूटियों के सक्रिय घटकों को अवशोषित करने की एक बहुत ही अद्भुद क्षमता होती है। घी की यह गुणवत्ता "योगवाही" के रूप में जानी जाती है। घी को विभिन्न जड़ी बूटी के साथ इसलिए संसाधित किया जाता है, जिससे की घी उनके उपयोगी गुणों को स्वमं में अवशोषित कर ले | इस प्रकार से संसाधित घी का आयुर्वेद में व्यापक रूप से विभिन्न स्वास्थ्य परिस्थितियों में उपयोग किया जाता है।

घी को हर्बल काढ़े के साथ एक सहायक के रूप में प्रयोग किया जाता है।

घी को जड़ी बूटियों के पेस्ट अथवा चूर्ण में एक सहायक के रूप में मिश्रित कर प्रयोग किया जाता है।

 

गर्भावस्था में घी का उपयोग -

♦   एक गर्भवती महिला में, प्रसव पीड़ा के प्रारम्भ होने के तुरंत पश्चात, महिला को तेल मालिश एवं गर्म पानी का स्नान दिया जाता है। इसके बाद, महिला को घी के साथ दलिया दिया जाता है।

♦   आयुर्वेद में गर्भावस्था में घी का एक आवश्यक आहार घटक के रूप में सेवन करने का परामर्श दिया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि घी को एक ऐसे मीठे पदार्थ के रूप में माना गया है, जो जन्म के बाद से किसी के लिए भी नित्य सेवन हेतु अनुकूल है।

♦   बुद्धिमत्ता, स्मृति, चातुर्य, पाचन शक्ति, दीर्घायु, पुरुषों में वीर्य एवं स्त्रियों में अंडाणु की गुणवत्ता एवं आंखों की दृष्टि बढ़ाने हेतु घी एक आदर्श पदार्थ है | यह बच्चों, वृद्ध, ऐसे व्यक्ति जो अधिक बच्चों की इच्छा रखते हैं, देह की कोमलता एवं सुखद आवाज की अनुभूति की प्राप्ति में अत्यंत उपयोगी है |

♦   सभी उपलब्ध तेलों एवं वसाओं में से, घी युवावस्था को बनाए रखने में सबसे अधिक उपयोगी है; इसमें हजारों प्रकार के प्रसंस्करण द्वारा हजारों सुखद प्रभाव देने की क्षमता है।

♦   गर्भावस्था काल में, घी और दूध जैसे स्फूर्तिदायक पदार्थों का उपयोग आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए। घी, बाहरी एवं आंतरिक दोनों रूप से प्रयोग किया जा सकता है।

♦   घी एक ऐसा पदार्थों है जिसका एक गर्भवती महिला दैनिक आहार के रूप में सेवन कर सकती है।

♦   विशेष रूप से, गर्भावस्था के पहले बारह दिनों के दौरान, गाय के दूध से निर्मित घी का गर्भवती मां द्वारा आवश्यक रूप से सेवन किये जाने का आयुर्वेदा परामर्श देता है |

♦   गर्भावस्था के तीसरे महीने में, दूध, घी एवं शहद का संतुलित सेवन गर्भवती को करना चाहिए |

♦   गर्भावस्था के पांचवें महीने में, दूध एवं घी का संतुलित सेवन गर्भवती को करना चाहिए |

♦   गर्भावस्था के छठे महीने में, मीठी जड़ी बूटियों के साथ संसाधित घी एवं दूध का संतुलित सेवन गर्भवती को करना चाहिए |

♦   गर्भावस्था के सातवें महीने में, जंगली रतालू ( वाइल्ड याम ) आदि जड़ी बूटियों के साथ संसाधित घी का संतुलित सेवन गर्भवती को करना चाहिए |

♦   गर्भावस्था के आठवें महीने से, घी एवं दूध का सेवन पीने के रूप में करना चाहिए | घी के साथ संसाधित चावल के दलिया का सेवन भी गर्भवती को करना चाहिए |

 

गर्भावस्था के समय घी के बाहरी उपयोग -

♦   गर्भावस्था के समय रक्त बहने की स्थिति में, शत धातु अथवा सहस्र धातु घृत (हजारों बार धोया हुआ) को घी के साथ नाभि के नीचे के सभी स्थानों पर लगाना चाहिए |

♦   नाभि क्षेत्र हेतु पानी से धोया हुआ घी अर्थात घी व पानी को बराबर मात्रा में मिलाएं,अच्छी प्रकार से मैश करें व पानी से घी निथार लें। इस प्रक्रिया को 10 से 15 बार दोहराएं | अब गर्भवती स्त्री के नाभि क्षेत्र में इस पानी से घुले घी का लेपन करें यह गर्भावस्था को स्थिर करता है |

♦   हल्दी के साथ घी का लेपन गर्भावस्था काल में, कटी फटी एड़ियों के उपचार में कारगर है |

♦   घी को हथेली एवं पैरों पर जलन की अनुभूति से छुटकारा पाने के लिए अत्यंत उपयोगी बताया गया है |

♦   एक कप घी में एक चम्मच हल्दी पाउडर मिलाएं। गर्भावस्था काल में पेट, स्तनों और नितंबों के निचले भाग पर इस मिश्रण का लेपन करें। यह स्ट्रेच मार्क्स के उपचार में अत्यंत सहायक है |

 

घी का उपभोग कैसे करें?

♦   सुबह के समय या नाश्ते के भाग के रूप में, घी का आधा चम्मच सेवन, आपका दिन प्रारम्भ करने की एक लाजवाब शैली है |

♦   आमतौर पर घी के सेवन के उपरान्त, गर्म पेय पदार्थ का सेवन करना उत्तम होता है। उदाहरण स्वरुप, सुबह के चाय / कॉफ़ी से पूर्व आधा चम्मच घी का सेवन किया जा सकता है।

♦   भोजन ग्रहण करते समय, कठिन खाद्य सामग्री के साथ पहले घी का सेवन किया जाना चाहिए, इसके बाद नरम खाद्य पदार्थ का सेवन करें एवं अंत में दही का सेवन करना उत्तम रहता है |

 

घी का उपयोग नाक में डालने (नेज़ल ड्रॉप्स) के रूप में -

घी की 2 बूंद सुबह के समय दोनों नाक के छिद्रों में, भोजन से 30 मिनट पहले डाली जाती हैं। इस कर्म को नस्य कर्म कहा जाता है।

नाक के छिद्रों में नेज़ल ड्रॉप्स के रूप में घी का उपयोग अनेक प्रकार के रोगों के उपचार में सहायक है जैसे :-

सफेद बाल, बाल झड़ने, माइग्रेन, तनाव, सिरदर्द, चेहरे की नसो मे दर्द, टिनिटस (कर्णक्ष्वेड), आवाज़ की समस्याएं, नज़रों की समस्या, स्मृति एवं एकाग्रता की कमी आदि |

घी का नस्य कर्म (नेज़ल ड्रॉप्स) के रूप में उपयोग लगभग 2-6 सप्ताह के समय तक लगातार किया जा सकता है।

 

नेज़ल ड्रॉप्स हेतु कौनसा घी अधिक प्रभावशाली होता है ?

स्किज़ोफ्रेनिया, मिर्गी इत्यादि जैसे विशिष्ट रोगों के उपचार में, नेज़ल ड्रॉप्स हेतु गाय के घी का उपयोग सर्वोत्तम प्रभावशाली है |

 

घी के नेज़ल ड्रॉप्स के रूप में उपयोग हेतु कुछ आवश्यक नियम -

♦   यदि आकाश बादलों से भरा हो, अधिक ठन्डे अथवा वर्षा ऋतु के समय, साइनसाइटिस, सर्दी, खांसी एवं ज्वर के समय, घी का नेज़ल ड्रॉप्स के रूप में उपयोग करने की अनुशंसा नहीं की गई है |

♦   घी, वात एवं पित्त दोष को संतुलित करता है, अतः सिर एवं गर्दन से सम्बंधित वात एवं पित्त की सभी स्थितियों में घी उपयोगी होती है।

♦   किन्तु साइनसाइटिस, सर्दी, खांसी एवं ज्वर के मामलों में (जो वात एवं पित्त के कारण हैं), घी का उपयोग स्थिति परिस्तिथि को और भी अधिक गंभीर कर सकता है |

 

 

घी के दुष्प्रभाव एवं विपरीत संकेत :

♦   पीलिया, हेपेटाइटिस, यकृत पर चर्बी के बढ़ने की स्थिति में घी का त्याग करना उत्तम रहता है |

♦   घी के अधिक सेवन से अपच एवं दस्त हो सकता है।

♦   ठंड एवं खांसी के समय घी का सेवन स्थिति को और अधिक बिगाड़ सकता है |

♦   ज्वर एवं ऑव के समय विशेष रूप से पित्त के बढे होने की स्थिति में घी का सेवन नहीं करना चाहिए।

♦   इस स्थिति में दही का सेवन पीलिया रोग के जनन का कारण बनता है एवं यह चेतना को शिथिल भी कर सकता है, जिसके परिणाम अत्यंत घातक मिल सकते हैं |

♦   गर्भवती महिलाओं को ठंड एवं अपच से पीड़ित होने की स्थिति में घी के सेवन से बचना चाहिए |

♦   घी के सेवन के पश्चात पेट की अपच या पेट की भारीपन की स्थिति में, एक गर्म पेय अथवा एक कप अल्प वासा युक्त (सप्रेटा) दूध का सेवन लाभदायक रहता है |

 

 

घी के अधिक उपयोग का प्रबंधन :

♦   यदि आपको लगता है कि आप अधिक मात्रा में घी का सेवन कर चुके हैं तो घी के पूर्ण रूप से पचने तक भोजन ग्रहण न करें, वैसे भी, आपको भूख लगेगी भी नहीं |

♦   प्रत्येक तीस मिनट के अंतराल पर गर्म पानी का सेवन करें व गर्म पानी से नहाएं |

♦   यदि आप भूख का अनुभव करते हैं तो गर्म एवं तरल खाद्य पदार्थ जैसे हॉट वेज सूप का सेवन करें |

♦   पेट एवं शरीर में हल्कापन अनुभव करने के पश्चात, आप नियमित आहार का सेवन प्रारम्भ कर सकते हैं।

♦   त्रिफला, त्रिकतु - का उपयोग आँतों को साफ करने एवं पाचन शक्ति में सुधार करने के लिए किया जाता है, यदि घी, गलत उपयोग के कारण अपच का कारण बनती है तो

♦   घी के गलत उपयोग के दुष्प्रभावों का सामना करने हेतु गर्म व अल्प वसा युक्त (सप्रेटा) दूध का सेवन एक विशिष्ट उपाय के रूप में बताया जाता है। यह पाचन क्रिया में सुधार करने में भी सहायता करता है।

♦   घी शीतलक नहीं है। इसके शीतलक प्रभाव केवल पेट पर ही कार्य करते हैं। यह प्रकृति में हल्के से कुछ गर्म है। यह इसकी गर्मी तासीर के कारण, यह पाचन शक्ति में सुधार करने में सहायक है एवं चूँकि इसकी तासीर कुछ गर्म है तो यह वात को संतुलित करता है।

 

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