ज्योतिषशास्त्र : आयुर्वेदा

माइग्रेन- कारण, लक्षण, प्राणायाम, सुझाव, आयुर्वेदिक एवं घरेलु उपचार

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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माइग्रेन आधुनिक युग की एक ज्वलित स्वास्थ्य समस्या है, जो 10 में 1 से अधिक को प्रभावित करती है। जीवनशैली में परिवर्तन, आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं औषिधि माइग्रेन के उपचार में महत्वपूर्ण घटक हैं।

आयुर्वेद में इस स्थिति को 'सूर्यावर्त' कहा जाता है | सूर्या का अर्थ है 'सूर्य' और 'वर्ता' का अर्थ है 'दर्द' या 'रुकावट'। माइग्रेन के रोगी को सूर्योदय के समय सिरदर्द पीड़ा देना प्रारम्भ कर देता है, दोपहर के समय यह अपने चरम पर होता है एवं संध्या ढलते ढलते यह कम हो जाता है | यद्यपि यह इस बीमारी की सामान्य विशेषता है, किन्तु प्रत्येक रोगी में माइग्रेन के यही लक्षण होते हैं, ऐसा भी कहना सही नहीं होगा | रोग के लक्षण शरीर व जीवनशैली के आधार अनुसार भिन्न भिन्न हो सकते हैं |

माइग्रेन मस्तिष्क एवं रक्त वाहिकाओं में अत्यधिक उत्तेजना के कारण होता है। माइग्रेन का सिरदर्द आम तौर पर एक तरफा टीस मारने वाले सिरदर्द से सम्बंधित है, जिसमें मतली (उल्टी की प्रवृत्ति), उल्टी एवं प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता की अनुभूति होती है। कुछ रोगियों को औरा के माध्यम से भी माइग्रेन सम्बंधित चेतावनी के लक्षण मिलने लगते हैं, ऐसे रोगियों में दृश्य परिवर्तन हो जाता हैं | ऐसा माइग्रेन के दौरे से ठीक पहले होता है।

 

आयुर्वेद अनुसार माइग्रेन के कारण :-

♦   प्राकृतिक आग्रहों का दमन

♦   अपच

♦   प्रदूषित भोजन का सेवन

♦   लंबे समय तक धूप में रहना

♦   तैलीय एवं मसालेदार भोजन

♦   क्रोध, ईर्ष्या, दु:ख, तनाव आदि

♦   शुष्क, तीखे और नमकीन भोजन का सेवन

 

माइग्रेन के दौरे पड़ने के कारण : -

♦   शराब या धूम्रपान करने से

♦   अचानक कॉफी / चाय का सेवन रोकना से

♦   महिला के मासिक धर्म चक्र या गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग के दौरान हार्मोन के स्तर में परिवर्तन से

♦   नींद के पैटर्न में परिवर्तन - अधिक नींद या कम नींद से

♦   व्यायाम या अन्य शारीरिक तनाव से

♦   तेज आवाज़, उज्ज्वल रोशनी, इत्र / सुगंधों द्वारा इंद्रियों पर अत्यधिक उत्तेजना या तनाव से

♦   उपवास से

♦   तनाव एवं चिंता से

 

माइग्रेन को सक्रिय करने वाले खाद्य पदार्थ :-

आम तौर पर ऐसे खाद्य पदार्थ जो कफ़ दोष अथवा पित्त दोष में अचानक वृद्धि के कारक होते हैं के सेवन से माइग्रेन का दौरा पड़ सकता है |

बेक किये हुए खाद्य पदार्थ, चॉकलेट, डेयरी खाद्य पदार्थ, गरिष्ठ गैर शाकाहारी भोजन, प्याज, मूंगफली, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, किण्वित खाद्य पदार्थ, मसालेदार भोजन, माइग्रेन का कारण बन सकते हैं।

 

माइग्रेन सिरदर्द की उत्पत्ति :-

प्रेरक कारकों के कारण, पित्त दोष मस्तिष्क में वात दोष के प्रवाह को रोक देता है, जिस कारण टीस मारने वाला दर्द उत्पन्न हो जाता है। सूर्यावर्त नामक सिरदर्द के मामले में, क्योंकि पित्त दोपहर में अधिक प्रभावशाली हो जाता है अतः सिरदर्द अपने चरम पर आ जाता है | संध्या तक स्थिति शांत होने लगती है |

 

माइग्रेन के लक्षण:

आमतौर पर माइग्रेन की शुरआत आभा-दृश्य गड़बड़ी से होती है। ये गड़बड़ी - आंखों के सामने अंधा दृश्य, धुंधली दृष्टि, चमकदार प्रकाश दिखाई देना, टेढ़ी मेढ़ी  लाइट दिखाई देना, रेखाएं, आदि हो सकती हैं।

कुछ रोगियों में माइग्रेन से पूर्व के संकेत उभर आते हैं, जैसे कि जम्हाई, हल्के भ्रम, उल्टी की इच्छा इत्यादि।

 

माइग्रेन सिरदर्द की प्रकृति :-

♦   भौहें से उप्पर के भाग दर्द

♦   धूप में आने पर सिरदर्द बिगड़ता है

♦   टीस मारने वाला दर्द

♦   धड़कन के साथ दर्द, हर धड़कन के साथ दर्द का बढ़ना

♦   एक तरफा या दो तरफ सिरदर्द, कुछ घंटों तक या 2 से 3 दिन तक दर्द का बना रहना

♦   दर्द का गर्दन तक जाना एवं एक ही ओरे के कंधे तक जाना

 

माइग्रेन के लिए आयुर्वेदिक उपचार :-

♦   शिरोलेपा - हर्बल पेस्ट्स जैसे कपूर, चंदन, जटामांसी के पेस्ट का लेपन, जिनसे पित्त दोष शांत होता है|

♦   शिरो धारा - खोपड़ी के उप्पर तरल पदार्थ की पतली धारा का डालना।

♦   तेल धारा - क्षीरबला तेल एवं चन्दन तेल की धारा प्रवाहित करना जहां, पित्त की प्रभावशीलता अधिक होती है |

♦   क्षीर धारा (गाय का दूध) - पित्त की प्रभावशीलता अधिक होने पर |

♦   टकरा धारा (छाछ) - तब किया जाता है जब वात के मार्ग में उत्पन्न अवरोध समाप्त करना हो।

♦   कावला  गृह - चंदन के तेल एवं महानारायण तेल की मालिश |

♦   शिरोवास्ती - खोपड़ी के उप्पर चमड़े की बानी टोपी से कोई भी औषधीय तेल जो वात पित्त को शांत करते हों से धारा डालते रहे |

♦   स्नेहा नास्या - नाक में औषधीय तेलों जैसे कि षडबिन्दु तेल अथवा अनु तेल को डालें | इससे हालत में काफी लाभ मिलता है |

 

माइग्रेन में उपयोगी जड़ी-बूटियाँ :-

♦   यष्टिमधु ( यष्टिमधु  )

♦   सरिवा

♦   हरीतकी (हरड़)

♦   आमलकी ( आंवला )

♦   बाला

♦   मल्लिका ( चमेली / जेस्मिन  )

♦   कुमारी ( एलोवेरा )

 

माइग्रेन सिरदर्द में उपयोगी सरल घरेलू उपचार :-

♦   चमेली या अनार की मुलायम पत्ती लें व उसमें एक चुटकी नमक मिला दें व पीसकर ताजा रस निकाल लें । सुबह जल्दी, खाली पेट इस नए रस की 2-3 बूंदों को नाक में दोनों तरफ डालें। इस प्रक्रिया एक बार फिर संध्या के समय (6-7 बजे) दोहराएं। इससे माइग्रेन के असहनीय दर्द में ह्रास होता है |

♦   एक मुट्ठी दूब / दूर्वा घास लें व इसका ताजा रस निकाल लें। इसमें 2 चुटकी मुलेठी पाउडर / चूर्ण को अच्छी तरह मिला लें। दोपहर के समय लगभग 1 माह तक इसका सेवन करें। यह उपचार माइग्रेन की तीव्रता में ह्रास कर दर्द में लाभ देता है |

♦   धनिया के बीज का चूर्ण बना लें | 1 कप पानी में 1 चाय का चम्मच धनिये का चूर्ण मिला लें | इस मिश्रण को रात भर भीगा छोड़ दें, अगले दिन सुबह खाली पेट इसका सेवन करें |

♦   रात में 5 किशमिश एवं 5 बादाम पानी में भिगोएँ, अगले दिन सुबह खाली पेट सेवन करें ।

 

तनाव, चिंता एवं माइग्रेन :-

तनाव एवं चिंता माइग्रेन के रोग की तीव्रता को बढ़ाने में अहम् कारक है | लम्बे समय तक माइग्रेन का बना रहना रोगी में अवसाद को विकसित करता है। इसलिए, माइग्रेन को नियंत्रित करने में एक अनुशासित व तनाव मुक्त जीवनशैली का होना महत्वपूर्ण माना गया है।

 

माइग्रेन और कब्ज :-

कई मामलों में, माइग्रेन रोगी अक्सर कब्ज और गैस्ट्राइटिस के लक्षणों से पीड़ित होते हैं जैसे कि पेट में जलन, सूजन, आदि। ऐसे रोगियों में माइग्रेन के दौरे व तीव्रता को कम करने के लिए कब्ज का उपचार करना आवश्यक व लाभदायह होता है |

 

माइग्रेन और प्राणायाम :-

ऐसे प्राणायाम, जिनमें सांस रोकने की आवश्यकता होती है कई रोगियों में, माइग्रेन के दौरे की तीव्रता को बहुत बढ़ा देती है। अतः अनुलोम - विलोम जैसे सरल प्राणायाम माइग्रेन के रोगी द्वारा किये जा सकते है किन्तु साँसों को लंबे समय रोकने या तेज गाठ से लेने व छोड़ने वाले प्राणायामो से बचने की सलाह दी जाती है।

 

माइग्रेन और महिलाएं :-

जिन महिलाओं में मासिक चक्र व रजोनिवृत्ति समय अथवा इसके करीब माइग्रेन की समस्या होती हैं उनमें, हार्मोनल संतुलन के लिए उपचार उपयोगी रहता है।

 

महत्वपूर्ण सुझाव :-

♦   दर्द निवारक औषधियां जल्दी जल्दी न लें | दर्द निवारक औषधियां के प्रयोग से सिरदर्द हो सकता है एवं माइग्रेन की आवृत्ति में वृद्धि हो सकती है।

♦   सोने एवं खाने का कार्यक्रम नियमित अंतराल पर सुनिश्चित करें।

♦   में कम से कम 7 घंटे की नींद लें |

♦   उपवास रखने से बचें | इससे पित्त और वात दोनों में ही वृद्धि होगी जिस कारण माइग्रेन बिगड़ जायेगा। अतः खाना न छोड़ें |

♦   बहुत हलकी खुशबु वाले इत्र का प्रयोग करें |

♦   धूम्रपान छोड़ दें | मादक पदार्थों का सेवन न करें |

♦   डार्क कॉफी / चाय का सेवन न करें |

♦   अचानक से कॉफी या चाय का सेवन बंद न करें इसकी मात्रा में धीरे धीरे कमी लाएं |

♦   तेज संगीत एवं आकर्षक चमकदार रोशनी से बचने के लिए पब व क्लब से दूर रहे |

♦   बाहर निकलते समय धूप का चश्मा पहनें।

♦   अपने निवास स्थान पर उचित हवादार वातावरण सुनिश्चित करें | लंबी अवधि के लिए एयर कंडीशनर का उपयोग करने से बचें |

♦   सुबह की ताज़ी हवा में 15 मिनट चलने से अत्यधिक लाभ मिलता है |

♦   आयुर्वेद केंद्र पर जाकर महा नारायण तेल से मसाज करवाएं |

♦   महा नारायण तेल लें और स्वमं सप्ताह में एक बार मसाज करें व तत्पश्चात स्नान करें |

♦   सूर्य की सीढ़ी से बचाव हेतु छतरी या टोपी का प्रयोग करें।

♦   हरे मिर्च का उपयोग पूर्ण रूप से बंद कर दें |

♦   दालचीनी, इलायची, लौंग, अदरक और काली मिर्च का उपयोग किया जा सकता है |

♦   तेज आवाज़ें न सुने |

♦   क्रोध को नियंत्रित करें |

♦   कंप्यूटर / टीवी का प्रयोग बहुत कम करें साथ ही स्क्रीन की चमक को कम कर ही प्रयोग करें |

♦   स्नान के लिए अत्यधिक गर्म पानी या अत्यधिक ठंडे पानी का प्रयोग न करें |

♦   वह वस्तुएं अथवा खाद्य पदार्थ जो माइग्रेन के दौरों की आवृत्ति या दशा में वृद्धि करते हैं उनकी एक सूचि बना लें व उनसे बचें |

 

का सिरदर्द बहुत बड़ी संख्या में एक स्वास्थ्य विकार के रूप में स्थित है | कुछ में यह वंशानुगत कारणों से आ गया है व कुछ में जंक फूड, अनियमित व असामान्य भोजन के सेवन आदि कारकों से भी हो जाता है | हालांकि यह इस रोग के जनन का मूल कारण नहीं हैं, किन्तु इस रोग की उत्तेजना या वृद्धि के कारक अवश्य ही हैं |

इसके अतिरिक्त, तनाव, देर रात तक जागना, अत्यधिक यात्राएं, सौंदर्य प्रसाधन (बॉडी स्प्रे, तेज इत्र आदि), धूम्रपान, मधपान इसकी स्थिति को बिगड़ने में अपना योगदान देते हैं। अतः माइग्रेन से बचने के लिए अथवा इसकी प्रभावशीलता को कम करने के लिए एक अच्छी, अनुशासित व संतुलित जीवनशैली की आवश्यकता है |

 

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