ज्योतिषशास्त्र : रत्न शास्त्र

रत्नों का भौतिक विज्ञान के आधार पर वर्गीकरण

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

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आज कल के इस वैज्ञानिक युग में किसी भी वस्तु को तभी सर्व स्वीकृत माना जाता है जबकि वह विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरे। अतः रत्नों का भी वैज्ञानिक दृष्टि से परिक्षण करना उचित होगा।

 

रत्न: भौतिक विज्ञान की कसौटी पर

भौतिक विज्ञान के परीक्षणों के माध्यमों से यह निष्कर्ष ज्ञात हुआ है कि प्रत्येक रत्न अपनी कठोरता के आधार पर ही श्रेष्ठ अथवा निम्न माने जाते है। कठोरता से तात्पर्य रत्न की दृढ़ता से है।

वैज्ञानिकों की दृष्टि में किसी भी रत्न की उच्चतम गुणवत्ता एवं मानकता की प्रमाणकता हेतु उस रत्न का आपेक्षिक घनत्व एवं कठोरता अनिवार्य गुण होते हैं तथा साथ ही उसमें तन्यता होना भी आवश्यक है।

मानक के अनुरूप आपेक्षिक घनत्व अभाव में कोई भी रत्न उपयोगी नहीं माना जाता। परीक्षण के आधार पर विशेषज्ञों ने कुछ रत्नों का आपेक्षित घनत्व निर्धारित किया है। इस माप के प्रतिकूल स्थिति वाला रत्न अर्थात निर्धारित मानक से कम या अधिक घनत्व वाला रत्न श्रेयस्कर नहीं माना जाता है तथा ऐसे रत्न दोषपूर्ण और अनुपयोगी माने जाते हैं।

 

प्रमुख रत्न और उनका आपेक्षिक घनत्व

कड़े वैज्ञानिक परीक्षणों एवं मानक की कसौटी पर बारम्बार जिन रत्नों का आपेक्षिक घनत्व सर्वमान्य और विज्ञानसम्मत घोषित हो चुका है, उनका विवरण निम्न प्रकार है-

 

       क्रमांक            रत्न                     आपेक्षिक घनत्व
1 गोमेद 4.20
2 तामड़ा 4.07
3 कुरुन्दम 4.03
4 पुखराख 3.53
5 हीरा 3.52
6 पेरी डॉट 3.40
7 शोभामणि 3.10
8 चन्द्रकान्त 2.87
9 फीरोजा 2.82
10 बेरूज 2.74
11 स्फटिक 2.66
12 स्पाइनल 2.60
13 रत्नोपल 2.15

 

 

रत्नों की कठोरता

रत्न में जितनी अधिक कठोरता होगी वह अधिकतम कठोरता वाला रत्न उतना ही उच्च श्रेणी का होग। कठोरता ही रत्न की जीवनी शक्ति कही जाती है। कुछ प्रमुख रत्नों की कठोरता का परीक्षण करके वैज्ञानिकों ने उनका जो तुलनामतक क्रम निर्धारित किया उसे निम्न प्रकार समझ सकते है। स्मरण रहे कि निम्नवत दिया यह क्रम अधिकतम से प्रारम्भ होकर न्यूनतम की ओर चलता है

(1)  हीरा    (2)  फैल्सपर    (3)  जिप्सम    (4)  नीलम    (5)  एपीटाइट    (6)  टैल्क    (7)  पुखराज    (8)  स्पार    (9)  स्फटिक    (10)  कैल्साइट

रत्नों की कठोरता के मापन हेतु उनको खरोचा जाता है। यह खरोंच लोहे या अन्य किसी धातु से न लगाकर एक रत्न से ही दूसरे रत्न पर लगाईं जाती है। खरोंच डाल सकने वाला रत्न कठोर एवं खरोंच खाने वाला रत्न मृदुल माना जाता है। खरोंच का आकार और उसकी गहराई कठोरता का माप प्रदर्शित करती है। इस कसौटी पर हीरा सर्वाधिक कठोर रत्न साबित होता है।

 

रत्न एवं विधुत शक्ति

समस्त रत्नों में कुछ न कुछ विधुत प्रभाव अवश्य ही रहता है। प्रयोगों के माध्यम से यह सिद्ध हो चुका है कि समस्त रत्नों में विधुत गुण निहित है, जिसको निम्न प्रयोगों से अनुभव किया जा सकता है

पुखराज, तृणकान्त, हीरा या शोभामणि को मोटे सूती या ऊनी रेशेदार कपड़े से रगड़ने पर उससे विधुतकण विकरित होते दिखाई देते हैं। दूसरे प्रयोग में हीरे को रुई में लपेटकर रगड़ने से हीरे में निहित विधुत अग्नि का रूप लेकर रुई को जला देती है।

 

वैज्ञानिक परीक्षण आधारनुसार रत्नो के प्रभाव एवं भेद के आधार पर इनमें तीन प्रकार की विधुत शक्ति का अस्तित्व होना पाया गया है-

(1)  दाब विधुत :-  कुछ रत्नों का निर्माण ऐसे तत्वों से होता है कि दबाव पड़ने पर उन रत्नो में विधुत उत्पन्न होती है। इनका एक सिरा ऋण एवं दूसरा सिरा धन व्यक्त करता है। दबाव हटते ही ये रत्न अपनी स्वाभाविक स्थिति में आ जाते हैं। स्फटिक अथवा मणिभ की गड़ना ऐसे ही रत्नों में की जाती हैं।

(2)  ताप विधुत :-  जो रत्न ताप के सम्पर्क में आकर विधुतमय हो जाते हैं, उनकी गणना ताप विधुत वाले रत्नों की श्रेणी में होती है। किन्तु वह रत्न तभी विधुत उत्पन्न करने में सक्षम हो पाता है जब ताप सामान्य से कुछ अधिक हो। शोभामणि तथा स्फटिक की गणना ऐसे ही ताप विधुत वाले रत्नों में की जाती है।

(3)  घर्षण विधुत :-  कुछ ऐसे रत्न भी हैं जिन्हें किसी सूती अथवा ऊनी कपड़े से रगड़ने पर उनमें विधुत प्रभाव उत्पन्न जाता है। रगड़ते ही उसी क्षण गौर से देखें तो दिखाई पड़ता है कि रत्न से चिनगारियाँ निकल रही हैं। कहरवा, पुखराज, शोभामणि और हीरा आदि की गणना ऐसे ही रत्नों की श्रेणी में की जाती है।

 

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