7 साल पूर्व
मोती रत्न की गणना प्राणिज रत्नों में होती है। मोती रत्न को फारसी भाषा में मुखारिद नाम से सम्बोधित किया जाता है, अरबी भाषा में गौहर अथवा गुहर एवं अंग्रेजी भाषा में पर्ल नाम से सम्बोधित किया जाता है। यह रत्न समुद्री सींग के पेट से प्राप्त होता है। मोती पैदा करने वाला सीप एक विशिष्ट वर्ग का होता है। दृष्टिगोचर है कि सीप के पेट में एक प्रकार का स्राव जो स्वतः ही उत्पन्न होता है से मोती का निर्माण होता है। संज्ञान है की जब सीपी के पेट में समुद्री चूने का सूक्ष्मतम अंश आहार के रूप में अथवा किसी अन्य माध्यम से पहुँच जाता है उसके पश्चात सीपी के पेट में उत्पन्न होने वाला स्राव चूने के अंश पर चिपककर चरणबद्ध तरीके से लगातार उसकी परतें मोटी करता जाता है। अंततः स्राव की परतों से निर्मित यही आवरण ठोस मोती का रूप ले लेता है।
मोती रत्न चन्द्रमा ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है। प्रख्यात ज्योतिषाचार्यों के मतानुसार चन्द्रमा ग्रह से लाभ एवं अनुकूलता प्राप्ति हेतु मोती रत्न धारण करना अति उत्तम उपाय है। देखा जाए तो मोती रत्न का उपयोग सौंदर्य अलंकरण के रूप में प्राचीनकाल से चला आ रहा है। बड़े एवं धनी परिवारों एवं राज घरानों में मोतियों के हार तथा मोतियों से निर्मित अन्य आभूषणों के रूप में पहने जाते हैं। असली व सच्चा मोती बहुत मूल्यवान व दुर्लभ है अतः महँगाई और दुर्लभता के कारणवर्ष मोती रत्न आमजन की पहुँच से दूर हैं। परन्तु मोती के मोहक एवं मनभावन रूप ने जनमानस पर ऐसा प्रभाव डाल रखा है कि प्लास्टिक आदि वस्तुओं से ठीक असली मोती की भाँति ही नकली मोती भी निर्मित कर लिया गया है। विभिन्न प्रकार के अलंकार आजकल नकली मोती से निर्मित किये जाते हैं। रूप रंग एवं चमक दमक में वे असली मोती को भी मात करते हैं।
समुंद्री सीपी के अलावा और भी अन्य स्रोत उपलब्ध हैं जहाँ से मोती प्राप्त होता है। परन्तु समुंद्री सीपी से जो मोती प्राप्त होता है वही अति दुर्लभ कहा जाता है। यह आकार, रंग, गुण और प्रभाव सबमें अधिक होने के कारण विशेष रूप से प्रभावी होता है। मोती रत्न के कुछ अति दुर्लभ रूपों का वर्णन निम्न प्रकार से है-
(1) गजमुक्ता, (5) शूकरमुक्ता,
(2) सर्पमुक्ता, (6) मीनमुक्ता,
(3) वंशमुक्ता, (7) आकाशमुक्ता,
(4) शंखमुक्ता, (8) मेघमुक्ता।
किन्तु उक्त वर्णित मोती इतने दुर्लभ हैं कि कदाचित् ही किसी को प्राप्त हों सकें, इनका केवल विवरण मात्र ही मिलता है। सर्वसुलभ और बहुप्रचलित मोती समुंद्री सीप वाला ही है जिसे आम भाषा में शुक्तिमुक्ता नाम से भी जाना जाता है।
प्राप्ति स्थान के आधार पर मोती के गुण
मोती रत्न संसार भर के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पन्न अथवा प्रात होता है। मोती के प्राप्ति स्थल के आधारानुसार ही इसका कोटि निर्धारण होता है। आजकल बाजार में मुख्य रूप से निम्न प्रकार के मोती उपलब्ध हैं-
(1) बसरे का मोती- बसरे का मोती अपनी श्रेणी व कोटि का सर्वश्रेष्ठ एवं बहुत मूल्यवान होता है। यह मोती ईरान की खाड़ी में बसरा के समीप उत्पन्न होता है। अपनी अंदरुनी चमक एवं टिकाऊपन के लिए यह मोती विश्वविख्यात है।
(2) टाल मोती- आस्ट्रेलिया देश के समीप के समुंद्री क्षेत्र में प्राप्त होने वाला यह मोती बसरे के मोती से कुछ कम मूल्य एवं कोटि का होता है। रंग में यह मोती श्वेत होता है एवं चमक व सौंदर्य का इसमें अभाव होता है।
(3) उड़न मोती- भारत के असम प्रदेश में शिलांग क्षेत्र की नदियों में उड़न मोती प्राप्त होते हैं। ये मोती बहुत ही कम मूल्यवान होते हैं। इस मोती की चमक तो तेज होती है परन्तु यह कच्चापन लिये होता है।
(4) कागवासी मोती- कागवासी मोती श्याम आभा युक्त होता है। यह अमेरिका देश में मैक्सीको की खाड़ी में पाया जाता है परन्तु यह मोती ज्योतिषाचार्यों के मतानुसार धारणीय नहीं होता। वैनिजुयेला प्रांत में भी कागवासी मोती पाया जाता है, किन्तु ये सफेद रंग का होकर भी सुन्दर एवं सुडौल नहीं होता।
कागवासी मोती भारत वर्ष में जामनगर के निकट, बंगाल की खाड़ी एवं श्रीलंका के निकट मनार की खाड़ी में भी पाया जाता है।
शुद्ध मोती की पहचान
मोती की शुद्धता एवं निर्दोषता की निम्न प्रयोगों से पहचान की जा सकती है-
मोती को गौ मूत्र में दिन रात के लिए पड़ा रहने दें ऐसा करने पर यदि मोती टूट जाता है तो कृत्रिम है।
एक अन्य जांच प्रयोग में मोती को चावल के छिलको से रगड़कर तत्पश्चात गौ मूत्र से धोने पर यदि मोती टूट जाता है तो भी कृत्रिम है। उपर्युक्त दोनों दशाओं में अगर मोती पर कोई प्रभाव न पड़े तो वह मोती शुद्ध एवं निर्दोष है।
प्राकृतिक मोती को दांतों के बीच रखकर यदि दबाव दिया जाए तब ऐसे स्थिति में शुद्ध एवं निर्दोष मोती चटक अथवा टूट जाता है परन्तु कृत्रिम मोती नहीं टूटता।
कांच के गिलास में साफ पानी भरकर यदि उस गिलास में प्राकृतिक मोती डाल दिया जाय तो पानी से किरणें विकरित होती प्रतीत होती हैं।
रासायनिक प्रयोगों से भी असली एवं नकली मोती की शुद्धता परख की जा सकती है किन्तु यह प्रयोग विधि आमजन हेतु काफी जटिल है अतः इसका उल्लेख यहां नहीं किया जा रहा है।
मोती को तभी गुणसम्पन्न और प्रभावी माना जाता है, जब वह गोल, सुडौल, वजनी, चिकना, चमकलीला एवं रंगीन आभा बिेखेरता हो, साथ ही उससे तारे की भाँति किरणें विकिरित होती हों। मोती जहाँ ज्योतिष मतानुसार चन्द्रमा के प्रभाव में वृद्धि उत्पन्न करने वाला रत्न है, वहीं आयुर्वेद में इसका प्रयोग एक महत्तवपूर्ण औषधि के रूप में भी किया जाता है। मोती की भस्म को असाध्य रोगों का निवारण हेतु प्रयुक्त किया जाता है। सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में भी moti को अनेक रूपों में प्रयोग किया जाता हैं। अंलकरण से लेकर उबटन एवं औषधि तथा तन्त्र व मन्त्र तक में भी मोती का प्रयोग किया जाता है।
मोती रत्न धारण विधि
मोती धारण करने के लिए सर्वप्रथम अपना वजन करें व उसको १० से भाग कर दें जो अंक आये उतने रत्ती का मोती धारण करें | माना की आपका वजन ७० किलो है इसे १० से भाग करने पर ७ अंक आता है अर्थात आपको सवा सात रत्ती का मोती धारण करना है | मोती को चाँदी की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्लपक्ष के प्रथम सोमवार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी को पंचामृत अर्थात- दूध, दही, घी, गंगा जल एवं शहद के घोल में डाल दे | उसके बाद पांच अगरबत्ती चंद्रदेव के नाम जलाये व प्रार्थना करे कि हे चन्द्र देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न, मोती धारण कर रहा हूँ, कृपया करके मुझे आशीर्वाद प्रदान करे | तत्पश्चात अंगूठी को निकाल कर “ॐ सों सोमाय नम:” मंत्र का 108 बार जप करते हुए अंगूठी को अगरबत्ती के उपर से घुमाए तत्पश्चात अंगूठी को शिवजी के चरणों से लगाकर कनिष्टिका ऊँगली में धारण करे |
मोती के उपरत्न
ज्योतिष के मतानुसार शुभ प्रभाव की पूर्ण प्राप्ति हेतु शुद्ध एवं निर्दोष मोती को चाँदी की अँगूठी में ही धारण करना चाहिए। मानव की जन्म कुंडली में यदि चन्द्रमा ग्रह निर्बल है तो उसको सबल बनाने हेतु मोती उत्तम रत्न है। किन्तु असली मोती मूल्यवान होने के कारण आमजन हेतु दुर्लभ है। असली मोती के आभाव में इसके पूरक अथवा उपरत्न भी उपलब्ध है। असली एवं शुद्ध मोती के आभाव में ज्योतिषाचार्य एवं रत्न विशेषज्ञ चन्द्रकान्त, मुक्ताशुक्ति, ओपल अथवा सूर्याश्म धारण हेतु उपयुक्त बताते हैं। इनमें ओपल का प्रभाव गृहस्थ के लिए उपयुक्त नहीं होता चूंकि यह एक अतिसात्विकतादायक रत्न है एवं यह गृहस्थ जीव को काम, क्रोध, मोह आदि से विरक्त करके गृस्थि के प्रति उदासीन एवं वैरागी तक बना देता है। अतः समृद्धि, कामी एवं सांसारिक सुख की चाहत रखने वाले व्यक्ति को ओपल पत्थर का प्रयोग वर्जित हे। यह आध्यात्मिक विचारधारा वालों के लिए अति उपयुक्त सिद्ध होता है। चन्द्रकान्त को मूनस्टोन भी कहते हैं। यह भी परम प्रभावी तथा मोती का श्रेष्ठ पूरक माना गया है।
मुक्ताशुक्ति में केवल मोती की सतरंगी आभा होती है, इसका कोई ज्योतिषीय प्रभाव नहीं देखा गया। इसे आभूषणों की सज्जा में, लाकेट, बटन आदि के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
सूर्याश्म एक पत्थर है जो हल्की लाल-पीली आभा से युक्त होता है। इसे भी मोती के पूरक-रूप में पहनते हैं। कुछ लोग इसे सूर्यमणि भी कहते हैं, पर यह उनका भ्रम है। सूर्यमणि वस्तुतः वह रत्न है जिसे माणिक्य के सन्दर्भ में लालड़ी नाम से जाना जाता है।
मोती का सबसे अच्छा, सस्ता और प्रभावी उपरत्न चन्द्रकान्त ही है। यह दूधिया, पीला, गुलाबी एवं नीले रंग की आभा में प्राप्त होता है।
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