8 साल पूर्व
हनुमानजी को समस्त देवों में सर्वाधिक शक्तिशाली, प्रसिद्ध एवं सर्वपूजनीय देवता का स्थान प्राप्त है। उनकी कृपा प्राप्त कराने वाले कुछ मन्त्रों का उल्लेख हम यहां कर रहे हैं। साधक अपनी श्रद्धानुसार इनका जप करके लाभान्वित हो सकते हैं।
मन्त्र इस प्रकार हैं-
♦ ओइम् हं हनुमते आंजनेयाय महाबलाय नमः।
♦ ओइम् आंजनेयाय महाबलाय हुं फट्।
♦ ओइम् ऐं ह्नीं हनुमते रामदूताय नमः।
♦ हनुमन् सर्वधर्मज्ञः सर्व कार्य विधायकः।
अकस्मादाग तोत्पातं नाशयाशु नमोस्तुते।।
♦ हनुमन्नंजनी सूनो वायुपुत्रं महाबलः।
अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोस्तुते।।
साधना विधि
जो साधक हनुमानजी की कृपा की कामना रखता है वह उक्त वर्णित पाँच मन्त्रों में से किसी एक मन्त्र को नित्य प्रतिदिन 3 हजार की संख्या में जपें। साधक को यह मन्त्र जप साधना लगातार ग्यारह दिनों तक नियम व संयम के साथ करनी है। जप साधना समाप्ति पर दशांश हवन जो की कुल जपे मन्त्रों का दसवां हिस्सा होता है अर्थात यहां साधक को जप समाप्ति पर 3300 हवन करने हैं। दशांश हवन करने से ही साधक को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है एवं हनुमानजी के प्रभाव से उस पर आये हुए संकट टल जाते हैं एवं सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है।
अनुष्ठान विधि
विधि विधान से रहित अनुष्ठान प्रभावशील नहीं होता अतः किसी योग्य मन्त्र शास्त्री से मन्त्र जप के विधान का भलीभांति विवेचन कर ही अनुष्ठान आरम्भ करना चाहिए। यूँ तो, श्रद्धा व भक्ति से कोई भी भक्त जन, कहीं भी व कभी भी, किसी भी मन्त्र से अपने अभीष्ट देव का स्मरण कर सकता है; किन्तु जब अनुष्ठान की बात हो तो उसे पूर्ण विधि विधान से ही सम्पन्न करना आवश्यक है, चूंकि विधि विधान से किया गया जप ही पूर्ण प्रभावी होता है।
लगभग सभी मन्त्रों की साधना में, जप से पूर्व कुछ विशेष क्रियायें करने का विधान है; जैसे-संकल्प, विनियोग, प्राणायाम, ऋष्यादि न्यास, करांग न्यास, मन्त्रवर्ण न्यास, पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन, दिग्वन्ध, कवच और ध्यान। इसी प्रकार जप की समाप्ति पर आरती, स्तुति-पाठ और प्रार्थना करना भी आवश्यक है। इन समस्त नियमों का पालन करते हुए ही जप साधना की जानी चाहिए।
हनुमानजी की साधना सिद्धि हेतु यह बात अति आवश्यक व हितकारी है कि साधना के समय साधक को अपने भीतर से अपवित्रता, अन्धविश्वास, क्रोध, स्वार्थ, शंका, भ्रम, वैर, हिंसा, कुत्सित विचार, छल, चालाकी, अस्वच्छता एवं मानसिक चंचलता का सर्वथा दमन कर देना चाहिए। हनुमान जी के प्रति श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, सहिष्णुता, समर्पण भावना, दासभाव जैसी मनोस्थिति में किया गया जप ही सफल व लाभप्रद सिद्ध होता है व ऐसा भक्त ही हनुमान जी की कृपा का पात्र भी होता है।
साधक के लिए हनुमानजी की कृपा प्राप्ति हेतु कुछ अन्य मन्त्र निम्नलिखित हैं। इनमें से किसी एक मन्त्र को चुनकर उसे सम्पूर्ण विधि विधान से 10 दिन में एक लाख जपकर 11 वें दिन दशांश हवन एवं कुछ ब्राह्मणों को भोजन कराने से शीघ्र ही अभीष्ट फल की प्राप्ति की संभावना बलिष्ट हो जाती है। हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होने वाले तथा मनोवांछित फल देने वाले देवता कहे जाते हैं।
♦ ओइम् हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्।
♦ ओइम् हनुमते नमः।
♦ श्री हनुमतेनमः।
♦ ओइम् आंजनेयाय विधमहे महाबलाय धीमहि तन्नो हनुमान प्रचोदयात्।
♦ ओइम् पश्चिममुखाय गरुड़ाननाय पंचमुख हनुमते मं मं मं मं मं सकल विषहराय स्वाहा।
♦ हं पवन नन्दनाय स्वाहा।
♦ आपदामपहतरिं दातारं सर्व सम्पदाम्। लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो मनाम्यहम्।
♦ ओइम् पूर्वं कपिमुखाय पंचमुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु संहारणाय स्वाहा।
♦ अंजनीगर्भ संभूतः कपीन्द्र सचिवोत्तमः। रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष सर्वदा।
♦ हनुमान चालीसा।
श्री तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा में, हनुमान जी की बहुत ही प्रभावशाली स्तुति है। लाखों भक्त प्रतिदिन इसका पाठ करते हैं। यदि इस मन्त्र साधना का प्रतिदिन 40 बार पाठ सम्पूर्ण विधि विधान व श्रद्धाभाव से किया जाए व तत्पश्चात दशांश हवन कर कुछ ब्राह्मणों को भोजन भी कराया जाए, तो ऐसा करने के उपरान्त शीघ्र ही साधक को चमत्कारी प्रभाव की अनुभूति होती है। भक्त के संकट व कष्ट दूर होते हैं व परम कल्याण प्राप्त होता है।
हनुमान चालीसा के अतिरिक्त श्री रामचरित मानस के ‘सुन्दरकाण्ड’ का प्रति दिन पाठ करने से भी हनुमान जी प्रसन्न होकर, साधक को अभीष्ट फल प्रदान करते हैं। हनुमानजी की साधना में शुचिता स्वच्छता एवं शुभ विचारों का बहुत ही महत्व है। साधना काल में तो यह परमावश्यक ही है कि साधक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, समस्त दुर्विचारों से दूर रहे।
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