ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

स्त्री जातक का सामान्य फलादेश

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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ज्योतिषाचार्यों के मत के अनुसार जिस प्रकार से कुण्डली देखकर पुरुष जातक का फलादेश का विवेचन किया जाता है, उस प्रकार से किसी स्त्री जातक के संबंध में फलादेश विवेचन नहीं किया जा सकता। स्त्री जातक के संबंध में फलादेश विवेचन करने से पूर्व कई महत्वपूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार एवं चिंतन किया जाना आवश्यक होता है। उदहारण स्वरुप एक पुरूष जातक एवं एक स्त्री जातक की कुण्डली में ग्रह नक्षत्र एक समान है। पुरुष जातक की कुण्डली का फलित निकलता है कि उसके दो या तीन विवाह होंगे? यह फलादेश स्त्री की कुण्डली को देखकर कैसे किया जा सकता है। जबकि स्त्री ऐसे समाज अथवा वर्ग से सम्बन्ध रखती हो, जहां स्त्री जाती के दूसरे विवाह की कल्पना तक भी न की जा सकती हो? अतः स्त्री जातक की कुण्डली विवेचन में बहुत सावधानी से फलादेश किया जाना आवश्यक होता है। प्रायः हर वर्ग की स्त्री पढ़ी लिखी अथवा नौकरी व व्यापार करने वाली नहीं होती, नौकरी अथवा व्यापारिक क्षेत्र में भी स्त्री पुरूष की समकक्ष नहीं मानी गई है। अतः ऐसी अवस्था में स्त्री की कुण्डली का फलादेश बहुत सावधानी पूर्वक किया जाना आवश्यक होता है।

 

निम्नवत कुछ विशेष लग्न एवं भाव के अनुसार स्त्री जातक की कुण्डली का विवेचन प्रस्तुत है :-

ज्योतिशास्त्र अनुसार किसी स्त्री जातक की कुण्डली के अष्टम भाव के आधार से स्त्री जातक का मांगल्य अर्थात सधवापन सम्बंधित फलादेश, कुण्डली के नवम भाव के आधार से पुत्र संतान सम्बंधित फलादेश एवं लग्न के आधार से उसकी देह एवं सौंदर्य सम्बंधित फलादेश का विवेचन करना चाहिए। स्त्री जातक के पति एवं सुभगत्व सम्बंधित फलादेश सातवें भाव के आधारानुसार  एवं संग अर्थात अन्य लोगों के साथ समागम एवं सतीत्व सम्बंधित फलादेश चतुर्थ भाव के आधारानुसार किया जाना चाहिए। यदि उक्त वर्णित भावों में शुभ ग्रह स्थित होंगे तो शुभ फल करेंगे एवं अशुभ ग्रह के स्तिथ होने पर फल भी अशुभ ही प्राप्त होगा। उक्त वर्णित भावों में अशुभ अथवा क्रूर ग्रह स्वराशि का स्थित होने पर शुभ ही फल प्रदान करता है। 

यदि किसी स्त्री जातक की कुंडली में लग्न एवं चंद्रमा दोनों सम राशि में स्थित हों एवं सौम्य ग्रहों की दृष्टि उन पर पड रही हो तो ऐसी आज्ञाकारी पुत्र वाली, सभ्य पति वाली, निर्मल आचरण वाली, आभूषणों एवं संपत्ति से युक्त होती है। किन्तु यदि कुण्डली में लग्न एवं चंद्रमा दोनों ही विषम राशि में स्थित हों एवं अशुभ ग्रहों की दृष्टि उन पर पड रही हो अथवा अशुभ गृह उनके साथ योगं में स्थित हों तो ऐसी स्त्री कुटिल बुद्धि वाली, पति से उग्र एवं क्रोध पूर्ण व्यवहार करने वाली, काबू में न रहने वाली एवं दरिद्र होती है।

ज्योतिषविदों के मत के अनुसार स्त्री जातक की कुण्डली में उसके सौंदर्य, यश, विधा एवं धनयुक्त पति के सम्बन्ध में फलादेश उसकी कुण्डली के सप्तम भाव से करना चाहिए। किन्तु फलादेश से पूर्व यह भली प्रकार से देख लेना आवश्यक है कि सप्तम भाव पर कौन सी राशि एवं कौन सा नवांश स्थित है। यदि सप्तम भाव पर अशुभ राशि अथवा अशुभ नवांश स्थित हो तो ऐसी स्त्री का पति मूर्ख, चालाक एवं निर्धन होता है।

ज्योतिषविदों के मत के अनुसार स्त्री जातक की कुण्डली में यदि सप्तम भाव में मंगल हो तो ऐसी स्त्री के पति की मृत्यु उस स्त्री के जीवित रहते हो जाने की पूर्ण संभावना रहती है। यदि किसी स्त्री की कुण्डली में शुभ एवं पाप दोनों प्रकार के ग्रह सप्तम भाव में स्थित हों तो ऐसी स्त्री के दूसरे विवाह की संभावना भी होती है। यदि स्त्री जातक की कुण्डली के अष्टम भाव में कोई क्रूर अथवा अशुभ ग्रह स्थित होता है तो ऐसी स्त्री का पति अल्पायु होता है एवं यदि स्त्री जातक की कुण्डली के दूसरे भाव में कोई क्रूर अथवा अशुभ ग्रह स्थित हो तो सम्बंधित स्त्री स्वमं ही अल्प आयु होती है अथवा ऐसी स्त्री की मृत्यु उसके पति की मृत्यु से पूर्व ही हो जाती है ।

स्त्री जातक की कुण्डली में यदि सप्तम भाव में मंगल ग्रह स्थित हो एवं उस पर शनि की राशि पड रही हो अथवा सप्तम भाव में मंगल ग्रह शनि के नवांश में स्थित हो तो ऐसी स्त्री गुप्त रोग अर्थात योनि सम्बंधित रोग से पीडि़त होती है। यदि स्त्री जातक की कुण्डली के चतुर्थ भाव में कोई पापक अथवा अशुभ ग्रह स्थित हों तो ऐसी स्त्री कुलटा होती है। यदि स्त्री जातक की कुण्डली के लग्न भाव में, चंद्रमा एवं शुक्र ग्रह मंगल या शनि की राशि एवं अंश में स्थित हों तो ऐसी स्त्री व्यभिचारिणी होती है।

यदि स्त्री जातक की कुण्डली के सप्तम भाव में किसी शुभ ग्रह की राशि स्थित हो एवं वह नवांश में भी स्थित हो तो ऐसी स्त्री के कमर के नीचे जांघों के बीच का भाग अर्थात जघन प्रदेश अत्यंत सुंदर होता है एवं वह पति के पूर्ण सुख से सम्पन्न होती है। यदि स्त्री जातक की कुण्डली में लग्न  चतर्थ हो एवं चंद्रमा का शुभ ग्रहों से संबंध हो, तो ऐसी स्त्री सच्चरित्रा एवं गुणवती होती है। यदि स्त्री जातक की कुण्डली के त्रिकोणों में अर्थात पांचवें एवं नवें भाव में सौम्य ग्रह स्थित हों, तो ऐसी स्त्री सुखी, पुत्रवती एवं संपत्तिशलिनी होती है।

किन्तु यदि उक्त भावों में निर्बल अथवा क्रूर ग्रह स्थित हों तो ऐसी स्त्री बांझ होती है अथवा यदि संतान का सुख यदि प्राप्त हो भी गया हो, तो उसकी संतान अल्पायु होगी।

आजकल नई विचारधारा से सम्बन्ध रखने वाले ज्योतिषाचार्य स्त्री अथवा पुरुष कुण्डली विवेचन में कोई भेद भाव नहीं कर रहे हैं। उनके मत अनुसार आज के इस नए युग में स्त्री जातक को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हो चुकी है। स्त्री अपने घर से निकालकर बड़ी बड़ी नौकरी एवं बड़े बड़े उद्योग व्यापार धन्धे सम्भाल रही है अथवा विभिन्न स्वरूपों में सहयोग प्रदान कर रही है एवं विधवा व तलाकशुदा स्त्रियों के पुनर्विवाह भी समाज के लगभग सभी वर्गों में स्वीकार्य हो चुके हैं। अब समाज का हर वर्ग नारी शक्ति की अहमियत को समझ चुका है एवं उसको अपनी सहमति भी प्रदान कर चुका है। अतः ऐसे समय पुरुष एवं स्त्री जातक के कुण्डली विवेचन में पुरानी ज्योतिष परिकल्पना एवं विचारधारा के अनुसार भेद उचित नहीं है एवं तथ्य से परे भी है, एवं यह सत्य है भी।

 

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