ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

मांगलिक दोष युक्त कुंडली जातक के विवाह हेतु कुछ विशिष्ट उपयुक्त कुण्डली योग

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

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मांगलिक दोष एवं इससे जनित अशुभता

किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि मंगल, शनि, राहु अथवा दुर्बल चन्द्रमा ग्रह चौथे भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव अथवा द्वादश भाव में स्थित हों अथवा इन पर अपनी दृष्टि ड़ाल रहे हों तो, मांगलिक दोष होता है। वर अथवा वधु में से यदि कोई एक मांगलिक दोष से पीड़ित है तो विवाह के उपरान्त अपने से विपरीत लिंग वाले जातक का अहित करते हैं। यदि पत्नी की कुण्डली मांगलिक दोष से पीड़ित है तो वह विवाह उपरान्त अपने पति के अहित की कारक होगी एवं यदि पति की कुण्डली मांगलिक दोष से पीड़ित है तो वह विवाह उपरान्त अपनी पत्नी का अहित का कारक होगा।

 

मांगलिक दोष युक्त कुंडली जातक के विवाह हेतु कुछ विशिष्ट उपयुक्त कुण्डली योग

ज्योतिष में मांगलिक दोष के निवारण हेतु कोई उपाय नहीं है। वैदिक शास्त्र के अनुसार जब ग्रह अपनी बलवान स्थिति में या एकदम सुस्पष्ट स्थिति में नहीं होते हैं तब किये गए उपाय पूर्ण लाभ नहीं दे पाते किन्तु अल्प लाभ तो अवश्य देते ही है। पक्के मंगली हेतु किये गए उपाय लाभ ही देंगे इसमें संशय है। मांगलिक दोष निवारण हेतु किये गए उपायों से भाग्य का लिखा तो नहीं मिटाया जा सकता अपितु उसके अशुभ प्रभाव को कम अवश्य ही किया जा सकता है।

मांगलिक दोष निवारण हेतु सबसे कारगर उपाय यह है कि विवाह संस्कार हेतु कन्या जातक के लिये पुरुष जातक एवं पुरुष जातक के लिये कन्या जातक का चुनाव करते समय कुछ विशिष्ट कुण्डिलयों वाले पुरुष जातक एवं कन्या जातक का ही चुनाव करें।

 

1.  प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अवं द्वादश भाव में शनि ग्रह हो।

2.  मेष राशि वाले का मंगल लग्न भाव में हो।

3.  वृश्चिक राशि लग्न वाले का मंगल चतुर्थ भाव में हो।

4.  मकर राशि लग्न वाले का मंगल सप्तम भाव में हो।

5.  कर्क राशि लग्न वाले का मंगल, अष्टम भाव में हो।

6.  धुन राशि लग्न वाले का मंगल द्वादश भाव में हो।

7.  द्वितीय भाव में चन्द्र-शुक्र की युति हो।

8.  सप्तम भाव में चन्द्र-मंगल की युति हो।

9.  सप्तम भाव में मंगल-गुरु की युति हो।

10.  सप्तम भाव में मंगल हो और उसे गुरु पूर्ण दृष्टि से देखता हो।

11.  सशक्त गुरु शुक्र की राशि में हो।

12.  सशक्त गुरु आठवें भाव में हो।

13.  सप्तम भाव का स्वामी ग्रह बली होकर केन्द्र या त्रिकोण में हो।

14.  मंगल योग वाले कारक भाव में पापग्रह हो।

15.  सप्तम भाव का अधिपति ग्रह बलवान होकर सप्तम भाव को देख रहा हो।

16.  मंगली योग का कारक ग्रह मूल त्रिकोण या उच्चराशि में हो।

 

उपर्युक्त से विवाह करने पर वर अथवा कन्या का मांगलिक दोष आधे से अधिक कट जाता है। बहुत सारे ज्योतिष यह कहते नजर आते हैं कि उपर्युक्त योग से मंगली दोष का निवारण हो जाता है, किन्तु वास्तव में ऐसा होता नहीं है। इससे मांगलिक दोष का प्रभाव कम हो जाता है। इस दोष निवारण की प्रकृति को समझना चाहिये। मांगलिक कुण्डली की कन्या अथवा वर का विवाह करते समय जब कुण्डली मिलायी जाती है, तो उपुर्यक्त 16 में से किसी कुण्डली को चुनकर समझ लिया जाता है कि मांगलिक दोष का निवारण हो गया। वस्तुतः यह सभी 16 योग सभी प्रकार के मांगलिक दोषों का निवारण नहीं है। अतः सावधानी पूर्वक किसी विद्वान ज्योतिष से ही मांगलिक कुण्डली का मिलान करवाना उचित रहता है।

 

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