8 साल पूर्व
ग्रह अपने विभिन्न रूपों में प्रभाव दिखाने के साथ साथ रोगों के जनन का भी कारण बनते हैं। यहां हम ग्रह एवं उनसे जनित होने वाले रोगों का विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं
रोगों के कारक ग्रह मंगल एवं बृहस्पति यदि छठवें भाव, द्वादश भाव में स्थित हो तो :
सूर्य ग्रह - हृदय की असाधारण धड़कन, मिर्गी, लकवा, रक्तचाप जैसे रोगों का कारक ग्रह होता है।
मंगल ग्रह - पेट के रोग, हैजा, जिगर सम्बंधित विकारों का कारक ग्रह होता है।
बुध ग्रह - चेचक, खोपड़ी सम्बंधित रोग, स्नायु सम्बंधित रोग, जीभ एवं दन्त सम्बंधित रोग, रक्तचाप जैसे रोगों का कारक ग्रह होता है। ये बीमारियां उस समय होती हैं जब किसी जातक की जन्म कुण्डली में सूर्य छठे भाव में एवं बुध द्वादश भाव में स्थित होता है।
गुरू ग्रह - सांस से सम्बंधित रोगों, फेंफड़ों से सम्बंधित रोगों एवं दमा से सम्बंधित रोगों का कारक ग्रह होता है।
शुक्र ग्रह - चर्म सम्बंधित रोगों का कारक ग्रह होता है।
शनि ग्रह - नेत्र से सम्बंधित रोगों एवं कफ से सम्बंधित रोगों का कारक ग्रह होता है।
राहु ग्रह - बुखार, मानसिक रोग, प्लेग जैसे रोगों का कारक ग्रह होता है।
केतु ग्रह - फोड़े, फुंसी, काम शक्ति में ह्रास, यौन सम्बंधित रोग, कान एवं पीठ की हड्डी के रोगों का कारक ग्रह होता है।
गुरू ग्रह + राहु ग्रह - दमा, सांस से सम्बंधित रोगों के कारक ग्रह होते हैं।
गुरू ग्रह + बुध ग्रह - दमा, सांस से सम्बंधित रोगों के कारक ग्रह होते हैं।
राहु ग्रह + चन्द्र ग्रह - पागलपन, बवासीर, निमोनिया, एनीमिया जैसे रोगों के कारक ग्रह होते हैं।
राहु ग्रह + केतु ग्रह - पागलपन, बवासीर, निमोनिया, एनीमिया जैसे रोगों के कारक ग्रह होते हैं।
गुरू ग्रह + राहु ग्रह + सूर्य ग्रह + शुक्र ग्रह - टी बी रोग के कारक ग्रह होते हैं।
चन्द्रमा ग्रह + बुध ग्रह - रक्त विकार, नपुंसकता, पागलपन जैसे रोगों के कारक ग्रह होते हैं।
अष्टम भाव एवं पंचम भाव में जो अशुभ ग्रह स्थित होते हैं, उनका उपचार करने से रोग में ह्रास होता है। यदि पंचम भाव में कोई भी ग्रह उपस्थित नहीं होता है, तो रोगों की सम्भावना नहीं रहती है एवं यदि रोग हो भी जाए तो अल्प कालीन होता है व उसका जातक के स्वास्थ्य पर ना के बराबर ही असर पड़ता है।
यदि तृतीय भाव में राहु ग्रह अथवा केतु ग्रह स्थित हो एवं अष्टम ग्रह का फल भी अशुभ हो तो राहु व केतु ग्रह के द्वादश भाव में स्थित होने से निश्चय ही सहायता प्राप्त होती है, चाहे ये निसर्गतः शत्रु ही क्यों न हों।
यदि जन्म कुण्डली में सूर्य एवं गुरू ग्रह अथवा सूर्य एवं शुक्र ग्रह पंचम भाव में स्थित हों तो जातक के स्वास्थ्य को उस समय क्षति पहुंचेगी जब कि गोचरवशात् शुक्र अथवा राहु अथवा केतु ग्रह लग्न भाव में प्रवेश करें।
यदि शुक्र ग्रह अथवा राहु ग्रह अथवा केतु ग्रह पंचमस्थ हों तो जातक के स्वास्थ्य को उस समय क्षति पहुंचेगी जब गोचरवशात् सूर्य ग्रह अथवा गुरु ग्रह लग्न भाव में प्रवेश करें। यदि गुरू ग्रह पंचम भाव में स्थित हुआ तो जातक के घर में किसी बच्चे का जन्म होने पर उसके स्वास्थ्य में सुधार हो जायेगा।
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