ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कब मनाएं ?

Sandeep Pulasttya

6 साल पूर्व

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हम समाज में अपने बड़ों को सदा से ही श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव दो दिन मनाते देखते आ रहे हैं | कुछ ज्ञानवान व्यक्ति इसका रहस्य जानते हैं परन्तु अधिकाँश अनभिज्ञ है व सदा ही भ्रम में रहकर श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाते हैं | ज्योतिषशास्त्र के मत अनुसार जातकों को किस दिन व्रत रखना है एवं किस दिन अर्धरात्रि को प्रभु को भोग लगाकर व्रत खोलना है इस भ्रान्ति पर प्रकाश डाल इसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है |

प्रभु श्री कृष्णा का जन्म धर्मग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मॉस, कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र एवं वृष राशि में हुआ था | वर्ष 2018 के पंचांग अनुसार 02 सितम्बर, रविवार को सप्तमी तिथि रात्रि 08 बजकर 50 मिनट तक है तत्पश्चात अष्टमी तिथि प्रारम्भ होगी | 03 सितम्बर 2018, सोमवार को सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि है जो सांय 07 बजकर 23 मिनट तक रहेगी | तत्पश्चात नवमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी |

इसका अर्थ यह है कि अर्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी तिथि 02 सितम्बर, रविवार को ही उपलब्ध है | इसी प्रकार रोहिणी नक्षत्र 02 सितम्बर, रविवार को रात्रि 08 बजकर 51 मिनट से प्रारम्भ होकर 03 सितम्बर, सोमवार को रात्रि 08 बजकर 08 मिनट तक रहेगा अर्थात अर्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र केवल 02 सितम्बर, रविवार को ही है | अतः 02 सितम्बर, रविवार की रात्रि को पूजन, झूला झुलाना, भोग लगाना तथा चन्द्रमा को अर्घ देना शास्त्रोचित है | 

वैष्णव संप्रदाय में उदयकालीन तिथि एवं उदयकालीन नक्षत्र को मान्यता एवं प्रधानता दी गई है अतः वैष्णव संप्रदाय श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व उदयकालीन तिथि एवं उदयकालीन नक्षत्र के अनुसार ही मनाता है | चूँकि 02 सितम्बर 2018, रविवार को उदयकालीन तिथि सप्तमी है जो कि रात्रि 08 बजकर 50 मिनट तक है व अगले दिन की उदयकालीन तिथि अष्टमी है | इस कारण भी वैष्णव संप्रदाय में उपवास दूसरे दिन ही रखते हैं अर्थात जिस दिन उदयकालीन तिथि अष्टमी होती है | अतः वैष्णवों के लिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सोमवार, 03 सितम्बर 2018 को ही मनाया जाना उचित है | मथुरा में भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव सोमवार, 03 सितम्बर 2018 को ही मनाया जायेगा |

 

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