ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

सूर्य देव को अर्घ देने की अत्यंत प्रभावी एवं प्राचीन वैदिक विधि

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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सूर्य देव को अर्घ देना मनुष्य के दैनिक पांच अनिवार्य कर्मों में से एक कर्म है | प्रायः मनुष्य सूर्य देव को प्रसन्न करने उनका सानिध्य प्राप्त करने के लिए उन्हें अर्घ देते हैं, सूर्य देव के सम्मुख खूब मंत्र जाप करते हैं, परन्तु फिर भी उन्हें उनकी पूजा अर्चना का पूर्ण फल नहीं मिल पाता है | इस कारण कुछ समय पश्चात भक्त पूजन अर्चन करना ही बंद कर देते हैं | ऐसा करने पर लाभ के बदले हानि ही होती है साथ ही मन भी दुखी हो जाता हैं | आप जानते हैं या कभी आपने चिंतन मनम किया है कि आपको आपकी पूजा का आंशिक अथवा पूर्ण फल क्यों नहीं प्राप्त हो रहा है ?

आप ने यदि इस विषय पर कोई चिंतन मनन नहीं किया है अथवा अल्पज्ञान अथवा अज्ञानता के कारणवश आप नहीं जान पाएं है तो आपको बता दें कि ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि, आप किसी भी देवी देवता के लिए किया जाने वाला पूजन अर्चन सही विधि विधान से नहीं करते हैं | यहां हम आपको पांच प्रमुख देवताओं ( सूर्य देव, महादेव, विष्णु देव, गणेश जी, माँ भगवती ) में से एक सूर्य देव को अर्घ देने कि प्राचीन वैदिक विधि विस्तार से बता रहे हैं | प्रस्तुत विधि का अनुसरण कर आप सूर्य देव को अर्घ देने का निश्चित रूप से पूर्ण फल प्राप्त कर सकते हैं |

सर्वप्रथम एक ताम्बे का टोंटी वाला लोटा लें, पीतल का टोंटी वाला लोटा भी ले सकते हैं | स्टील का लोटा वर्जित है | इसमें जल भरें | गंगा जल उपलब्ध हो तो उसे भी इस जल में मिला सकते हैं अन्यथा केवल सादा जल भी उपयुक्त होता है | साथ में लाल रंग के फूल, लाल चन्दन, गुड़ मिलाएं | इनमें से तीनो वस्तु उपलब्ध न हो तो केवल कोई एक अथवा दो वस्तु अथवा वस्तुओं का उपयोग कर सकते हैं | एक ही वस्तु का प्रयोग करना हो तो गुड़ सर्वोत्तम रहता है | सूर्य देव को अर्घ सूर्योदय से पूर्व अर्थात ब्रह्ममुहर्त में अथवा सूर्योदय के पश्चात भी दिया जा सकता है | अर्घ अपने घर के भीतर, कमरे में, घर के आँगन में, घर कि छत पर, सड़क पर, घर के बाहर स्थित मंदिर में जाकर कहीं भी पूर्व दिशा कि ओरे मुख कर दिया जा सकता है |

अर्घ देने के लिए लोटे को अपने दोनों हाथों से पकड़ें व अपनी छाती के ठीक सामने लाएं | ध्यान रहे लोटा छाती के ठीक सामने हो न उप्पर हो, न ही नीचे हो | बहुत से व्यक्ति अर्घ देते समय लोटे को अपने सर के उप्पर ले जाते है तत्पश्चात अर्घ देना प्रारम्भ करते है, ऐसा सर्वथा गलत है | ध्यान रखें कि अर्घ का जल पड़ने वाले स्थान पर किसी का पैर न पड़े | इसके लिए एक बर्तन लें चाहे बड़ी थाली अथवा बड़ा कटोरा व उसमें ही अर्घ का जल डालें, जमीन पर अर्घ का जल न डालें |

अपनी छाती के ठीक सामने लोटा लाकर अब अर्घ देना प्रारम्भ करें | लोटे का जल एक बार में ही नहीं डालना है, इसे तीन चरणों में डालना है | इसके लिए प्रथम चरण में जब लोटे से जल डालें तो गायत्री मन्त्र का उच्चारण करें | गायत्री मंत्र इस प्रकार से है :- ॥ ॐ भूर्भुवः स्व तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात ॥

इसी प्रकार लोटे को हिला हिला कर दूसरी बार भी गायत्री मन्त्र के उच्चारण के साथ जल डालें | व ठीक इसी प्रकार तीसरी बार भी लोटे को हिला हिला कर गायत्री मन्त्र के उच्चारण के साथ जल डालें | तीन बार में यह जल डालने के पश्चात बर्तन में पड़े जल को अपने दाहिने हाथ की अनामिका ऊँगली से उसे स्पर्श कराएं व पुरुष इस जल का अपने मस्तक पर तिलक करें, स्त्री अपनी मांग में भरें, अविवाहित कन्या अपने मस्तक पर गोल बिंदी करें एवं विधवा स्त्री अपने कंठ पर लगाएं |

अब दस बार गायत्री मंत्र का जाप करें | यह जाप खड़े होकर अथवा बैठकर दोनों ही प्रकार से किया जा सकता है | बैठने के लिए केवल गर्म कम्बल अथवा गर्म वस्त्र से बने आसान का ही प्रयोग करें | चटाई, चर्म, कुश, सूती वस्त्र आदि से बने आसान का प्रयोग वर्जित होता है |

इसके पश्चात सूर्य देव के मंत्र  || ॐ घ्रणि: सूर्याय नमः ||   का बारह बार जाप करें |

अब सूर्य देव को प्रणाम कर जमीन पर रखे जल को उठा लें व इस जल को घर के भीतर अथवा बाहर लगे किसी पेड़ अथवा पौधे की जड़ में डाल दें | इस जल को कदापि भी तुलसी के पौधे में न डालें | यह जल अत्यंत ही शुद्ध व पवित्र होता है | अर्घ देते समय यह जल जिस किसी पर भी पड़ जाए वह जीव अथवा जंतु पवित्र हो जाता है | सूर्य देव की कृपा उस पर बन जाती है | इस प्रकार आप सूर्य देव को अर्घ देकर इसका पूर्ण फल व लाभ प्राप्तः कर सकते हैं |

 

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