ज्योतिषशास्त्र : रत्न शास्त्र

रत्नों के अनुकूल व प्रतिकूल रत्न, उनके प्रभाव एवं युग्म दोष

Sandeep Pulasttya

9 साल पूर्व

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आकाशीय सौरमंडल में स्थित ग्रहों की युति अर्थात दो या अधिक ग्रहों की एक राशि में उपस्थिति यदा कदा बहुत अनिष्टकारी एवं प्रतिकूल परिणाम प्रदान करती है। जिस प्रकार कुछ स्थितियों में ग्रह युति का सामीप्य सुखद एवं शुभ होता है उसी प्रकार कुछ परिस्थितियों में ग्रह युति फल कष्टकारी भी हो जाता है। निश्चय ही इस प्रतिक्रिया की पृष्ठभूमि में दो ग्रहों की विकिरणीय शक्ति का पारस्परिक विरोध ही काम करता होगा। परस्पर एक दूसरे से अलग प्रभाव वाले ग्रह जब समीपस्थ आ जाते हैं, तो उनसे विकिरित रश्मियों का पारस्परिक टकराव प्रकृति में प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न करता है किन्तु अनुकूल प्रभाव वाली रश्मियाँ कोई विपरीत हलचल उत्पन्न न कर उनसे अनुकूल प्रभाव में वृद्धि उत्पन्न करती हैं।

 

प्रतिकूल प्रभाव वाले रत्न कभी भी धारण न करें

समस्त नवरत्नों में से कोई भी रत्न अपने सम्बंधित ग्रह का लघुतम रूप होता है। इसमें अपने सम्बंधित ग्रह का ही रंग, प्रकाश एवं प्रभाव विद्मान होता है। अतः रत्नो में भी ग्रहों वाली टकराव एवं परस्पर विरोध की प्रभाव स्थिति निहित रहती है। फलतः यदि प्रतिकूल प्रभाव वाले रत्न एक साथ धारण किये जाये तो धारणकर्ता के लिए अनिष्टकारी व घोर विपरीत स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है। अतः रत्न धारण पूर्व यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि कहीं दो रत्न एक साथ धारण कर परस्पर प्रतिकूल गृह उत्तेजित तो नहीं हो जायेंगे।

ज्योतिष मतानुसार कुण्डली में नवम भाव का स्वामी ग्रह भाग्यकारक होता है। अतः उसका रत्न धारण करने से प्रगति के द्धार एवं पथ खुल जाते है। मानव में जनित विभिन्न रोगों के निवारण हेतु रत्नो का प्रयोग भी लाभदायक सिद्ध होता है। ज्योतिष मतानुसार यदि दो रत्नों को एकसाथ धारण करना है तो यह अवश्य जांच लें कि ये दोनों रत्न कहीं एक दूसरे के विरोधी तो नहीं हैं। यदि विरोधाभास दिखाई दे तो दो में से एक ही रत्न धारण करना चाहिए।

अनुभवी महऋषि एवं ज्योतिषचार्यों ने बड़े जतनो एवं प्रयासों के पश्चात एक तालिका का निर्माण किया जो इस तथ्य का उल्लेख करती है कि किन किन रत्नों में परस्पर मित्रवत् अथवा शत्रुवत् सम्बन्ध है। एक ऐसी स्थिति भी होती है जिसमें कुछ ग्रहों का सामीप्य सर्वथा तटस्थता की नीति अपनाये रहता है। अतः ऐसे रत्न न तो हानि पंहुचाते हैं और न ही लाभ भी देते हैं। अतः यथासम्भव भिन्न रत्नो के युग्म ही धारण करने चाहिए।

अनुभवी महऋषि एवं ज्योतिषचार्यों ने बड़े जतनो एवं प्रयासों के पश्चात एक तालिका का निर्माण किया जो इस तथ्य का उल्लेख करती है कि किन किन रत्नों में परस्पर मित्रवत् अथवा शत्रुवत् सम्बन्ध है। एक ऐसी स्थिति भी होती है जिसमें कुछ ग्रहों का सामीप्य सर्वथा तटस्थता की नीति अपनाये रहता है। अतः ऐसे रत्न न तो हानि पंहुचाते हैं और न ही लाभ भी देते हैं। अतः यथासम्भव भिन्न रत्नो के युग्म ही धारण करने चाहिए।

 

शुद्ध रत्न ही धारण करें

रत्नों को धारण पूर्व यह अवश्य ही सुनिश्चित कर लेना चाहिए की रत्न असली है या नहीं। तान्त्रिक पद्धति के अनुसार, शुद्ध रत्न ही हितकारी एवं लाभप्रद होता है। जबकि अशुद्ध रत्न बहुत ही घातक व विनाशकारी होते हैं। ज्योतिष मतानुसार नकली व सदोष रत्न न धारण करना ही उचित है। दूषित अथवा अशुभ रत्न भयंकर विनाश के जनक होते हैं।

अतः जब भी रत्न धारण करना हो तो वह शुद्ध, निर्दोष एवं धारक की जन्म कुण्डली के अनुकूल हो, तभी लाभप्रद रहता है।

 

रत्नों का पारस्परिक अनुकूल एवं प्रतिकूल प्रभाव निम्न तालिका से ज्ञात किया जा सकता है -

 

   क्रमांक

      रत्न              अनुकूल रत्न           प्रतिकूल रत्न            तटस्थ रत्न
     1  हीरा पन्ना, नीलम माणिक्य, मोती पुखराज, मूँगा
     2 मोती हीरा, पन्ना नीलम, मूँगा पुखराज, हीरा
     3 पन्ना हीरा, माणिक्य मोती पुखराज, मूँगा, नीलम
     4 पुखराज मोती, मूँगा, माणिक्य हीरा, पन्ना नीलम
     5 नीलम हीरा, पन्ना मोती, मूँगा -----
     6 मूँगा मोती, माणिक्य, पुखराज  माणिक्य, पन्ना पुखराज, नीलम, हीरा
     7 गोमेद हीरा, पन्ना, नीलम मूँगा, मोती, माणिक्य पुखराज, नीलम, हीरा
     8 माणिक्य पुखराज, मोती, मूँगा नीलम, हीरा पन्ना
     9 लहसुनिया हीरा, पन्ना, नीलम मूँगा, मोती, माणिक्य

पुखराज

 

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