7 साल पूर्व
नवरत्नों में से एक माणिक्य रत्न संसार भर में उच्च ख्याति प्राप्त रत्नो की श्रेणी में आता है। अपने मनभावन रंग व रूप एवं गुण के आधार पर माणिक्य रत्न सर्वत्र चर्चित है। संसार की लगभग समस्त प्रमुख भाषाओं में इसका विवरण प्राप्त होता है। संस्कृत भाषा में इसे माणिक्य, पद्मराग, कुरुविन्द, वसुरत्न आदि संज्ञा प्रदान की गई हैं। हिन्दी भाषा में माणिक्य, तेलगू भाषा में माणिक्यम्, बँगला एवं मराठी में माणिक, अरबी भाषा में लालबदरुशाँ, फारसी में याकूत एवं अंग्रेजी भाषा में रुबी की संज्ञा दी गई है।
माणिक्य रत्न की उत्पत्ति एवं रचना
माणिक्य रत्न असल में एक खनिज पत्थर है। भौतिक विज्ञान के प्रयोगों से जो निष्कर्ष प्राप्त हुए हैं उनके आधार पर इसमें एल्यूमिनियम, आक्सीजन, लौह एवं क्रोमियम तत्वों का मिश्रण होता है। खदानों से इसका मणिभ षट्भुज रूप प्राप्त होता है। माणिक्य रत्न की गणना कुरुविन्द जाति के रत्नों में होती है। इसकी उत्पत्ति भारत, चीन, बर्मा, श्रीलंका एवं अफगानिस्तान की खदानों में होती है। हीरा रत्न को यदि छोड़ दिया जाए तो, अन्य उपलब्ध समस्त रत्नो में माणिक्य रत्न सबसे कठोर रत्न के रूप में मान्य है।
माणिक्य रत्न एक पारदर्शी एवं रक्त कमल के सामान गहरे लाल रंग का रत्न है। यूँ तो श्रीलंका में उत्पन्न माणिक्य रत्न हल्की नीली आभा युक्त होता है परन्तु रंगभेद के आधार पर माणिक्य रंग की पाँच प्रकार की जातियों का संज्ञान प्राप्त होता है :-
पद्मराग : गहरे लाल रंग का तप्त कंचन जैसा, प्रकाश किरणें देने वाला, हल्की पीली आभा से युक्त यह माणिक्य सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
सौगन्धिक : अनारदाने जैसा रंग रखने वाला यह माणिक्य पद्मराग की अपेक्षा निम्न स्तर का होता है।
नीलागन्धी : श्रीलंका में उत्पन्न इस रत्न का रंग लाल होने के साथ हल्की नीली आभा भी लिये रहता है।
कुरुबिन्द : यह रत्न चमक में अधिक रंग में कुछ हल्का एवं हल्की पीली आभा से युक्त होता है।
जामुनी : लाल कनेर या जामुन के रंग का यह रत्न सामान्य मूल्य का होता है। माणिक्य का एक भेद होने पर भी इसका महत्तव साधारण ही है।
माणिक्य सूर्य ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है। इसमें पद्मराग श्रेणी वाला माणिक्य रत्न ही सर्वश्रेष्ठ होता है। पद्मराग श्रेणी वाला माणिक्य रत्न की अनुपलब्धता अथवा अभाव के कारणवर्ष इसके स्थानापन्न हेतु अनेक व्यक्ति माणिक्य धारण कर लेते हैं।
मणिक्य के दोष
सूर्य ग्रह को प्रबल कर अनुकूल लाभ प्राप्ति हेतु निर्दोष एवं असली माणिक्य रत्न को धारण किया जाता है परन्तु यह रत्न दोषयुक्त एवं नकली भी प्राप्त होता है। माणिक्य जो आभाहीन, भार में हल्का, धुमैला, अनगढ़, कठोर, मलिन, विकृत, खुरदरा, फटा हुआ, दो रंगों से युक्त, जाली, चित्तीदार अथवा बिन्दु के चिन्ह लिए हो, उसे भूलकर भी प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। ऐसा रत्न लाभ की अपेक्षा, भयंकर दुष्परिणाम देता है।
माणिक्य सूर्य ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है। जब किसी जातक की कुण्डली में सूर्य ग्रह निर्बल स्थिति में होता है तब उसका समुचित लाभ जातक को नहीं प्राप्त हो पाता है, ऐसी स्थिति में माणिक्य रत्न को धारण कर समुचित लाभ एवं अनुकूल प्रभाव की प्राप्ति संभव है। माणिक्य रत्न को कुण्डली की ग्रह स्थिति एवं राशि निर्णय के आधार पर धारण करना चाहिए। उचित तो यह रहता है कि किसी आवुभवी ज्योतिष विशेषज्ञ से जन्म कुंडली का विश्लेषण कराकर ही माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए।
मणिक्य के उपरत्न
असली एवं निर्दोष माणिक्य एक अति मूल्यवान रत्न है। अतः आमजन की पहुँच से यह रत्न दूर ही है। माणिक्य के आभाव में ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञों ने विकल्प रूप में कुछ सहज सुलभ एवं अल्प मूल्य वाले रत्नों का संज्ञान दिया है। ये उपरत्न अथवा स्टोन मूल रत्न की भाँति त्वरित प्रभावी नहीं होते, परन्तु कुछ अल्प प्रभाव तो अवश्य ही रखते हैं।
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञों ने माणिक्य रत्न का प्रमुख उपरत्न सूर्यमणि को माना है। इसे लालड़ी के नाम से भी जाना जाता है। लाल, लालड़ी, माणिक्य मणि यह सब एक ही हैं। रंगभेद से लालड़ी दस प्रकार की पायी जाती है; परन्तु इनमें रंगों का भेद इतना सूक्ष्म होता है की इन्हे पहचान पाना अथवा इनमें भेद कर पाना बहुत कठिन है। ऊँचे दर्जे की लालड़ी अति मूल्यवान होती है। कभी-कभी तो इसका मूल्य करोड़ों तक पहुँच जाता है। रत्न एवं ज्योतिष विशेषज्ञों का मत है कि निर्बल सूर्य की स्थिति में यदि माणिक्य के साथ लालड़ी भी पहन ली जाय तो आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त होता है।
तामड़ा अथवा ताम्रमणि भी माणिक्य रत्न का स्थनापन्न है। यह एक प्रकार का स्टोन है। सींगली एवं सूर्याश्म भी माणिक्य के पूरक हैं। यधपि लालड़ी जैसा प्रभाव इनमें नहीं होता है, तथापि थोड़ा प्रभाव तो ये स्टोन अवश्य ही दिखाते हैं।
माणिक्य रत्न धारण विधि
प्रत्येक रत्न के धारण करने की एक निश्चित विधि का वर्णन ज्योतिषाचार्यों ने किया है। किसी भी रत्न को अभिमन्त्रित कर धारण करने के उपरान्त जो फल मिलता है, वह मात्र अँगूठी में जडव़ाकर धारण कर लेने मात्र से कहीं अधिक होता है।
माणिक्य एक अति मूल्यवान रत्न है | सूर्य देव के रत्न माणिक्य अथवा रुबी को धारण करने के लिए सर्वप्रथम प्रश्न उपजता है कि कितने भार अथवा रत्ती का माणिक्य रत्न धारण किया जाना उपयुक्त रहेगा ? | इसके लिए सर्वप्रथम अपना वजन ज्ञात कर लें | अपने वजन के दसवें भाग के भार बराबर रत्ती का शुद्ध एवं ओरिजिनल माणिक्य स्वर्ण या ताम्बे की अंगूठी में जड़वाएं | किसी भी शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन सूर्य उदय के पश्चात् अपने दाये हाथ की अनामिका में धारण करें | धारण करने से पूर्व माणिक्य युक्त अंगूठी के शुद्धिकरण एवं प्राण प्रतिष्ठा करने हेतु सबसे पहले अंगूठी को पंचामृत अर्थात दूध, गंगाजल, शहद, घी और शक्कर के घोल में लगभग तीस मिनट तक डाल दें, फिर पांच अगरबत्ती सूर्य देव के नाम जलाए और प्रार्थना करे कि हे सूर्य देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न धारण कर रहा हूँ | मुझे आशीर्वाद प्रदान करे | तत्पश्चात अंगूठी को पंचामृत से निकालकर "ॐ घ्रणिः सूर्याय नम:" मन्त्र का जाप 108 बारी करते हुए अंगूठी को अगरबती के ऊपर से 108 बार घुमाये और अंगूठी को विष्णु या सूर्यदेव के चरणों से स्पर्श करवा कर अनामिका में धारण करे |
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