ज्योतिषशास्त्र : लाल किताब

लाल किताब कुंडली अनुसार जाने कि आपको पुत्र संतान उत्पन्न होगी अथवा पुत्री संतान

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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किसी जातक की जन्म कुण्डली में ग्रहों की स्थिति से विवेचन कर यह जाना जा सकता है कि सम्बंधित जातक के पुत्र संतान उत्पन्न होगी अथवा पुत्री। जन्म कुण्डली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार यह भी विवेचन किया जा सकता है की सम्बंधित जातक के पुत्रों अथवा पुत्रियों में किस लिंग की संतानो की संख्या अधिक होगी। निम्नवत प्रस्तुत विवेचन अनुसार आप स्वमं ही अपनी जन्म कुण्डली देखकर संतान सम्बंधित फलित को ज्ञात कर सकते हैं :-

 

⇒   यदि पिता एवं पुत्र का जन्म समय एक ही होता है तो ऐसी संतान की आयु बहुत लम्बी होती है।

⇒   जन्म कुण्डली में केतु ग्रह की स्थिति पुत्र संतान सम्बंधित फलित देती है।

⇒   जन्म कुण्डली में राहु ग्रह की स्थिति पुत्री संतान सम्बंधित फलित देती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि चतुर्थ भाव में केतु ग्रह स्थित होता है तो ऐसे जातक के पुत्र संतान कन्या संतानो की अपेक्षा संख्या में अधिक होती हैं।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि षष्टम भाव में चन्द्रमा ग्रह स्थित होता है तो ऐसे जातक के कन्या संतान पुत्र संतानो की अपेक्षा संख्या में अधिक होती हैं।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि षष्टम भाव में चन्द्रमा ग्रह स्थित होता है तो ऐसे जातक के कन्या संतान पुत्र संतानो की अपेक्षा संख्या में अधिक होती हैं।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में बुध एवं केतु ग्रह में से जो शुभ एवं अच्छी स्थित में होता है उससे ही पुत्र संतान का निर्णय होता हैं।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में केतु ग्रह शुभ एवं उच्च स्थित में होता है तो ऐसे जातक को उत्तम पुत्र संतान की प्राप्ति होती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में राहु ग्रह शुभ एवं उच्च स्थित में होता है तो ऐसे जातक को उत्तम कन्या संतान की प्राप्ति होती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में बुध ग्रह एवं शुक्र ग्रह परस्पर एक दूसरे से दृष्टिगत हों तो ऐसे जातक को पुत्र संतान की प्राप्ति होती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में सूर्य, चन्द्रमा, गुरु एवं केतु ग्रह युति में पंचम भाव में स्थित हों तो ऐसे जातक को उत्तम पुत्र संतान की प्राप्ति होती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में, केतु ग्रह एकादश भाव में एकल रूप में स्थित हो एवं उसे मंगल से बल प्राप्त हो रहा हो एवं द्वितीय भाव में मंगल, शुक्र एवं केतु के मित्र ग्रह स्थित हो तो ऐसी स्थिति में सम्बंधित जातक को पुत्र संतान प्राप्त होती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली के पंचम भाव में यदि कोई शुभ एवं उच्च फल प्रदान करने वाला ग्रह होता है तो ऐसी स्थिति में जातक को उत्तम पुत्र संतान की प्राप्ति होती है किन्तु ऐसा न होने पर पुत्र संतान की प्राप्ति में विघ्न बाधाएं आती हैं।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली के प्रथम भाव में मंगल, बुध, शुक्र अथवा केतु में से कोई एक ग्रह स्थित हो एवं शनि से प्रथम भाव किसी भी रूप में सम्बंधित हो अथवा कुण्डली के किसी भी भाव में शनि एवं मंगल ग्रह युति में स्थित हों तो ऐसी स्थिति में सम्बंधित जातक को पुत्र की प्राप्ति होती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली के प्रथम, द्वित्य, पंचम अथवा सप्तम भाव में से किसी एक भाव में केतु ग्रह स्थित हो एवं शनि ग्रह प्रथम अथवा एकादश भाव में स्थित हों एवं साथ ही साथ ये ग्रह किसी अशुभ एवं पापक ग्रह से प्रभावित न हों, तो ऐसी स्थिति में सम्बंधित जातक को पुत्र की प्राप्ति होती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में बुध ग्रह अथवा केतु ग्रह में से जिस ग्रह का प्रभाव अधिक होगा उसी के अनुसार सम्बंधित जातक को कन्या अथवा पुत्र की उत्पत्ति होगी।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली के तृतीय, पंचम अथवा एकादश भाव में शुक्र ग्रह स्थित हो शनि व केतु से शुक्र सम्बंधित हो तो ऐसी स्थिति में सम्बंधित जातक को पुत्र की प्राप्ति होती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में बुध ग्रह के मित्र ग्रह शुभ एवं उच्च स्थिति में हों एवं वे बुध ग्रह से किसी न किसी रूप में सम्बंधित हों तो ऐसी स्थिति में सम्बंधित जातक को कन्या की प्राप्ति होती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा एवं केतु ग्रह स्थिर होते हैं तो ऐसी स्थिति में पुत्र एवं कन्या संतानो की संख्या एक सामान होती है।

⇒   किसी जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा ग्रह जिस वर्ष नष्ट हो रहा हो एवं शुभ ग्रह चन्द्रमा की सहायता न कर रहे हों तो ऐसी स्थिति में जातक की संतान नष्ट हो जाती है।

 

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