8 साल पूर्व
सात वर्ष एवं छह माह का वह समय जिसमें किसी जातक पर शनि ग्रह सबसे अधिक प्रभाव दिखाता है शनि की साढ़े साती कहा जाता है। ज्योतिषशास्त्र की टेक्निकल भाषा अनुसार शनि ग्रह की परिभ्रमण गति एक राशि में कुल ढाई वर्ष की होती है। इस प्रकार किसी जातक की जन्म राशि से पूर्व की राशि, स्वमं जातक की जन्मराशि एवं जन्म राशि के एकदम अगली राशि में शनि के परिभ्रमण का समय काल तीन ढैया का होता है, जिसका जोड़ कुल मिलाकर साढ़े सात वर्ष का होता है। इन साढ़े सात वर्षों का समय शनि की साढ़े साती कहलाता है। इन साढ़े सात वर्षों में सम्बंधित जातक पर शनि ग्रह के अनेकों दुष्प्रभाव अपना असर दिखाते हैं जिस कारण जातक को कष्ट झेलना पड़ता है।
जन्म राशि के अनुसार शनि की साढ़े साती कब प्रभावी होती है निम्न सारणी अनुसार जाना जा सकता है :-
जन्म राशि | गोचर में शनि ग्रह की स्थिति |
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मेष | मीन - मेष - वृष |
वृष | मेष - वृष - मिथुन |
मिथुन | वृष - मिथुन - कर्क |
कर्क | मिथुन - कर्क - सिंह |
सिंह | कर्क - सिंह - कन्या |
कन्या | सिंह - कन्या - तुला |
तुला | कन्या - तुला - वृश्चिक |
वृश्चिक | तुला - वृश्चिक - धनु |
धनु | वृश्चिक - धनु - मकर |
मकर | धनु - मकर - कुम्भ |
कुम्भ | मकर - कुम्भ - मीन |
मीन | कुम्भ - मीन – मेष |
शनि साढ़े साती के निवारणार्थ लाल किताब के कुछ विशेष टोटके :
शनि साढ़े साती के प्रभाव काल में निम्न प्रस्तुत लाल किताब के टोटके आजमाने से शनि के कुप्रभाव से पीड़ित जातक को कुछ शान्ति प्राप्त होती है एवं साढ़े सात वर्ष के इस समय काल में अधिक कष्ट नहीं उठाने पड़ते हैं।
♦ मांसाहार एवं मदिरापान से दूर रहे।
♦ उत्तेजक पदार्थों अथवा औषधियों एवं गर्म तासीर वाले भोज्य पदार्थों का सेवन न करें।
♦ ईष्टदेव का पूजन अर्चन करें व उनसे सद्बुद्धि प्रदान करने की कामना करें।
♦ भैरव जी का विधि विधान पूर्वक पूजन अर्चन करें व उन्हें मदिरा चढ़ाएं। तांत्रिक अनुष्ठान अधिक लाभ प्रदान करता है।
♦ गणेश जी का विधि विधान पूर्वक पूजन अर्चन करें। तांत्रिक अनुष्ठान अधिक लाभ प्रदान करता है।
♦ महामृत्युंजय मन्त्र का जाप नित्य प्रतिदिन करें।
♦ काले घोड़े की नाल का छल्ला धारण करें।
♦ मछलियों को जौ के आटे की गोलियां खिलाएं।
♦ बन्दर, कुत्ते को भोजन भोजन खिलाएं।
♦ सर्प एवं काले कुत्ते को दूध पिलायें।
♦ बरगद की जड़ को पीसकर पाऊडर बना लें तत्पश्चात उसे मिट्टी, चन्दन एवं दूध में मिलाकर तिलक लगाएं।
♦ बरगद के पेड़ की जड़ में दूध चढ़ाएं।
♦ पराई स्त्रियों पर कुदृष्टि न डालें व न ही उन पर तंज कसें।
♦ पत्नी के अतरिक्त अन्य स्त्रियों से दैहिक सम्बन्ध स्थापति न करें।
♦ सदैव सदाचार का पालन करें।
♦ किसी के साथ गाली गलौंच न करें व न ही अपशब्द बोलें।
♦ कटु वचनो का प्रयोग न करें व न ही किसी की निंदा करें।
♦ क्रोध पर काबू रखना चाहिए।
♦ अस्त्र शस्त्र अपने साथ न रखें एवं इनके प्रयोग से बचें।
♦ दूसरों के लड़ाई झगड़ों एवं अन्य झमेलों से दूर रहे।
♦ लालच, बेईमानी एवं मुफ्तखोरी से अपने आप को दूर रखें।
♦ अर्थहीन बातें न करें व नपा तुला बोलें एवं अपने दिए हुए वचन का पालन करें।
♦ स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
♦ लोहे का दान करें।
♦ जिस मकान में अत्यधिक लोहे का प्रयोग किया गया हो अथवा उसमें अत्यधिक लोहा रखा रहता हो ऐसे घर में निवास न करें।
♦ ताम्बे का छेकल पैसा बहते जल में प्रवाहित करें।
♦ काली उड़द के दाने शुक्रवार की रात्रि में सोते समय अपने सिरहाने रखें व कुछ दाने घर के मध्य भाग में रखें। शनिवार प्रातः स्नानादि से निवृत होकर इन्हे बहते जल में प्रवाहित कर दें।
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