ज्योतिषशास्त्र : मन्त्र आरती चालीसा

विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु गायत्री मन्त्र एवं जप विधान

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

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गायत्री मन्त्र में कुछ विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु थोड़ा परिवर्तन करके जप करने का विधान भी बताया गया है, जो इस प्रकार है-

गायत्री मन्त्र -

ओइम् भूभुर्वः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं

भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात ।

 

बुद्धि एवं स्मरण शक्ति के विकास हेतु :-

नियमित प्रातः काल स्नानोपरान्त सूर्याभिमुख होकर आसन पर बैठें। मस्तक भीगा रहना चाहिए एवं नेत्र अधखुले रहने चाहिए। हाथ में जल लेकर संकल्प करें तत्पश्चात तीन बार ओंकार का उच्चारण करके गायत्री मन्त्र का जप प्रारम्भ करें। 1, 3, 5, 7, 9, 11 माला सुविधा अनुसार जप करें। इसके बाद मन्त्र पढ़ते हुए दोनों हथेलियाँ परस्पर रगड़कर माथे, सिर, आँख, नाक, कान, गले, मुँह आदि पर फेरें। इस क्रिया के प्रभावस्वरूप ज्ञानतन्तु सतेज और सक्रिय हो जाते हैं।

 

लक्ष्मी प्राप्ति हेतु :-

लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गायत्री मन्त्र का विधिपूर्वक नियमित जप करें। ध्यान रहे प्रत्येक मन्त्र के अन्त में तीन बार 'श्रीं' शब्द का भी उच्चारण करें। इस साधना से अभीष्ट फल प्राप्ति हेतु नियमानुसार समस्त पूजन सामग्री पीत वर्ण की होनी चाहिए। यही नहीं जप काल जितने दिन के लिए भी सुनिश्चित किया गया हो उतने दिन साधक को भोजन भी पीले वर्ण का ही ग्रहण करना चाहिए। जप काल में पड़ने वाले समस्त रविवार को उपवास किया जाना चाहिए एवं प्रत्येक शुक्रवार को हल्दी मिश्रित तेल की मालिश समस्त शरीर पर करनी चाहिए। आस्थापूर्वक लक्ष्मीजी का आवाहन करते हुए, कुछ दिनों तक लगातार यह साधना करते रहने से चमत्कारी प्रभाव दिखायी देता है। मन्त्र का उच्चारण इस प्रकार होगा-

ओइम् भूभुर्वः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात श्रीं श्रीं श्रीं।’

 

रोगमुक्ति हेतु :-

रोगों के निदान में भी गायत्री मन्त्र का जप चमत्कारी सिद्ध होता है। साधक को चाहिए कि वह अपने को अथवा अन्य किसी को रोगमुक्त करने से पूर्व यह ज्ञात कर ले कि रोग किस प्रकार का है अर्थात रोग वातज सम्बंधित है, पित्तज सम्बंधित है अथवा कफज सम्बंधित है। यह सुनिश्चित कर लेने के उपरान्त गायत्री मन्त्र जपते समय प्रत्येक बार मन्त्र के अन्त में 3 बार इस बीजाक्षर का उच्चारण करे- कफ एवं पित्त के रोगों में ‘ऐं’ तथा वात रोगों में ‘हूं’।

कफ व पित्त के रोगों में मन्त्र का उच्चारण निम्न प्रकार होगा-

ओइम् भूभुर्वः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात ऐं ऐं ऐं ।’

वात रोगों में मन्त्र का उच्चारण निम्न प्रकार होगा-

ओइम् भूभुर्वः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात हूं हूं हूं ।’

 

सुरक्षा कवच हेतु :-

किसी शुभतिथि, नक्षत्र में रविवार के दिन साधक को चाहिए कि उपवास करे। पहले से गोरोचन, जायफल, जावित्री, कस्तूरी एवं केसर लाकर रख ले। रविवार उपवास के दिन इन वस्तुओं को बारीक चूर्ण रूप में पीसकर इन्हे स्याही का रूप प्रदान करें तत्पश्चात भोजपत्र पर अनार की कलम से प्रारम्भ मे पांच बार ‘ओइम्’ जोड़कर सम्पूर्ण गायत्री मन्त्र लिखे। इसके बाद धूप, दीप, अक्षत, पुष्प आदि से इस भोजपत्र का पूजन करके 21 बार गूगल से हवन करे। तत्पश्चात् इस भोजपत्र को गायत्री प्रतिमा से स्पर्श कराकर, किसी चाँदी के कवच में बन्द कर ले। यह परम प्रतापी गायत्री कवच अनेक संकटों से धारक की रक्षा करता है। भूत व प्रेत, चोर व डाकू, राजकोप, आशंका, भय, अकालमृत्यु, रोग एवं अन्य अनेक प्रकार की बाधाओं का निवारण करके यह मन्त्र धारक को सदैव तेजस्वी बनाये रहता है।

 

प्रसव कष्ट निवारण हेतु :-

प्रसव कष्ट निवारण हेतु उक्त वर्णित विधि अपनाये किन्तु यहां भोजपत्र के स्थान पर कांसे की थाली पर गायत्री मन्त्र लिखकर धूप, दीप, हवन से थाली का पूजन करके रख लें। यदि घर में किसी स्त्री को प्रसव पीड़ा अधिक विचलित कर रही है, तो उसे गायत्री मन्त्र से अभिमंत्रित कांसे की थाली का दर्शन करायें, तत्पश्चात गायत्री मन्त्र पढ़ते हुए थाली में थोड़ा जल डालकर, प्रसव पीड़ा से अत्यधिक परेशान स्त्री को पिला दें। इसके प्रभाव से उसका कष्ट दूर हो जायेगा।

 

पुत्र प्राप्ति हेतु :-

जो दम्पति पुत्र प्राप्ति की कामना रखते हैं, वे दम्पति श्वेत वस्त्राभूषणों वाली गायत्रीजी का चित्र घर के किसी एकान्त स्थान पर स्थापित करें। पति पत्नी दोनों, प्रतिदिन नियमित रूप से स्नान आदि से निवृत हो शुद्ध व स्वच्छ वस्त्र धारण कर गायत्री मन्त्र चन्दन की माला से जपें। यहां यह बात ध्यान रखें कि मन्त्रोचारण में प्रत्येक बार मन्त्र की समाप्ति पर तीन बार ‘यं’ बीज का सम्पुट देना अनिवार्य है। रविवार के दिन श्वेत पदार्थ जैसे दूध, दही, भात आदि को अपने भोजन में सम्मलित करें। इस प्रकार विधि विधान व आस्थापूर्वक क्रियान्वित गायत्री जी की साधना के प्रभाव स्वरुप दम्पति को पुत्र सुख अवश्य ही प्राप्त होता है।

 

भूत प्रेत की बाधा निवारण हेतु :-

यदि कोई व्यक्ति भूत प्रेत की बाधा से ग्रस्त हो जाता है तो ऐसे व्यक्ति का बाधा निवारण गायत्री मन्त्र का जाप करते हुए हवन करने से संभव है। हवन सामग्री में वही सामान्य वस्तुयें मिश्रित की जाती है जो कि साधारण हवन सामग्री में मिश्रित की जाती है। हवन संपन्न होने के पश्चात यज्ञकुण्ड से भस्म लेकर बाधा ग्रस्त व्यक्ति के शरीर-हाथ, पैर, मुँह, नाक, कान, सिर, पेट, पीठ पर मल दें। भस्म मलते समय भी गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते रहना चाहिए। ऐसा प्रमाणित है की भस्म का प्रयोग करते ही रोगी का कष्ट दूर हो जाता है। यज्ञकुण्ड की शेष बची भस्म को किसी पवित्र स्थान पर सुरक्षित रख लें, यह भस्म दोबारा भी प्रयोग की जा सकती है।

 

सरकारी कार्यों में सफलता हेतु :-

किसी राजकीय कर्मचारी, अधिकारी को अपने अनुकूल करने हेतु, मुकदमा या ऐसी ही किसी अन्य समस्या का परिणाम अपने अनुकूल करने हेतु, गायत्री मन्त्र का जप सप्त व्याहतियों सहित करें। जप में इस बात का ध्यान रखें कि यदि उस समय जब आपका बायां स्वर चल रहा है, तो कल्पना में देवी के शरीर से निकल रही हरे रंग की ज्योति को देखें, एवं जब दाहिना स्वर चलने लगे तो पीली ज्योति की कल्पना करें। जप करते समय साधक अपनी दृष्टि उसी हाथ के अंगूठे पर केन्द्रित करें, जो स्वर चल रहा हो-बायें स्वर के समय बायां अंगूठा एवं दाहिने स्वर के समय दायां अंगूठा। सम्बन्धित अधिकारी के सम्मुख जाते समय भी स्वर एवं अंगूठे का क्रम ध्यान में रखते हुए, मानसिक गायत्री जप करते रहें। इस क्रिया के प्रभाव से उस अधिकारी की सहानुभूति आपकी ओर हो जायेगी।

 

विरोध - विद्रोह शमन हेतु :-

गायत्री मन्त्र का जप, प्रारम्भ में तीन बार ओइम् का प्रयोग करते हुए, विधि विधान व आस्था पूर्वक नियमित रूप से कुछ दिनों तक करें। जप करते हुए मन में ऐसी कल्पना हो कि मेरे मस्तिष्क से एक नीली किरण निकलकर विरोधी के मस्तिष्क में प्रवेश कर रही है एवं उसके प्रभाव से वह सारा वैर विरोध भूलकर, मेरे सामने सहज विनम्र भाव से खड़ा है। कुछ ही दिनों तक नियमित रूप से किया गया यह गायत्री मन्त्र का जप (इसमें प्रणव शब्द ‘ओइम्’ लगाना भूलें नहीं) विरोधी को अनुकूल बना देता है। सम्मोहन एवं आकर्षण के इस प्रभाव की अनुभूति व परख अनेकों व्यक्तियों ने प्रामाणित की है

 

विष निवारण हेतु :-

पीपल या चन्दन की लकड़ी से बनी हवन भस्म को उस हाथ में लें, जिधर का स्वर चल रहा हो। फिर गायत्री मन्त्र पढ़ते हुए अन्त में ‘हूं’शब्द जोड़कर अश्वारूढ़ देवी का ध्यान करें और वह भस्म पीडि़त व्यक्ति के उस अंग पर लगा दें, जहाँ विषैले जन्तु ने काटा हो। सर्प दंश के रोगी पर चन्दन की हवन भस्म को मन्त्र से अभिषिक्त करके लगायें। साथ ही, सरसों के कुछ दानें भी मन्त्राभिषिक्त करके पीसें और उसे शरीर में, समस्त इन्द्रियों के अग्रिम भाग पर लगा दें। विष निवारण में यह प्रयोग बहुत सफल देखा गया है।

 

शत्रुता निवारण हेतु :-

शत्रु का शत्रुभाव नष्ट करा उसे मित्र स्वरुप बनाने हेतु, गायत्री मन्त्र का जप अत्यधिक प्रभावशील है। गायत्री मन्त्र जप अनुष्ठान की विधि इस प्रकार है-

जप के समय ऊनी आसन का प्रयोग करें। साधक स्वयं लाल रंग के वस्त्र धारण करे। तत्पशात्  लाल चन्दन की स्याही से, अनार की लकड़ी से निर्मित कलम से पीपल के एक पत्ते पर शत्रु का नाम लिखें। उसे उलटकर सामने रख लें एवं गायत्री मन्त्र का जप प्रारम्भ करें। प्रत्येक बार मन्त्र के अन्त में ‘क्लीं’शब्द का चार बार उच्चारण करते रहें। प्रत्येक बार मन्त्र पूरा होने के पश्चात आचमनी से थोड़ा-सा जल उस पत्ते पर छिड़क दें। इस समय मन में यह कल्पना करें कि शत्रु सारा वैर भाव भूलकर मित्रभाव से सामने खड़ा है। जप के समय गायत्रीजी के सिंहवाहिनी रूप का स्मरण करें। जप हेतु लाल चन्दन की माला प्रयोग करनी चाहिए एवं कम से कम एक माला का नित्य जप किया जाना आवश्यक है। यदि 3-5-7 माला का जप हो सके तो बहुत उत्तम फलदायी रहता है। ऐसा अनुष्ठान नियमित करने से थोड़े ही दिनो में शत्रु का व्यवहार बदल जायेगा। वह सारा वैमनस्य भूलकर अनुकूल हो जायेगा।

 

चोर - दस्यु आदि के त्राण हेतु :-

प्रतिदिन प्रातः स्नान आदि से शुद्ध होकर, सिंहारूढ़ दुर्गाजी का ध्यान करते हुए गायत्री मन्त्र का  एक माला प्रतिदिन जप इस भावना के साथ कि, मेरे निवास स्थान के चारों ओर वृत्ताकार रेखा खिंची हुई है एवं जिस प्रकार लक्ष्मण रेखा को कोई नहीं लांघ सकता; उसी प्रकार उस रेखा को कोई लांघकर मेरे घर के भीतर नहीं आ सकता, से चोर, डाकू जैसे अपराधी व्यक्तियों की घर में  प्रवेश की आशंका क्षीण हो जाती है। दुर्गाजी के प्रताप से फिर कोई अनपेक्षित व्यक्ति वहां नहीं जा सकता। नियमित रूप से रात्रि में सोते समय भी गायत्री मन्त्र का जप करते हुए रक्षा हेतु, दुर्गाजी का ध्यान अवश्य ही कर लेना चाहिए।

 

ग्रह शान्ति हेतु

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का जीवन आकाश में नव ग्रहों की स्थिति से प्रभावित रहता है। ज्योतिषी कुण्डली बनाकर बता देते हैं कि अमुक व्यक्ति के जन्म के समय कौन ग्रह किस स्थिति में था, राशि और लग्न कैसी थी, और इन सबका प्रभाव उस व्यक्ति के जीवन पर कैसा पड़ेगा।

कभी कभी किसी ग्रह की स्थिति व्यक्ति के लिए बहुत कष्टप्रद हो जाती है। ऐसी स्थिति में ज्योतिष शास्त्र के विद्वान् उस व्यक्ति को कोई रत्न विशेष पहनने का परामर्श देते हैं। यह वैज्ञानिक रूप से भी प्रमाणित व स्वीकार्य है कि रत्नों में ग्रहों के प्रभाव को घटाने व बढ़ाने की क्षमता विधमान होती है। किन्तु रत्न अपना प्रत्यक्ष प्रभाव तभी दिखाते हैं, जबकि रत्न असली एवं पूर्णतया शुद्ध अवस्था मैं हो। किन्तु आज के युग में जहाँ मिट्टी सीमेंट व चूना भी शुद्ध न मिले वहाँ रत्न का असली मिलना बहुत दूर की कौड़ी है। ऐसी स्थिति में मन्त्रों का सहारा लेकर व्यक्ति रत्नों के अभाव की पूर्ति कर सकता है।

यदि किसी को ग्रह पीड़ा हो, कोई ग्रह कष्ट दे रहा हो, तो उसकी शान्ति के लिए गायत्री साधना एक अचूक उपाय है। शुभ समय में, शुभ स्थान पर गायत्री मन्त्र का 24,000 बार जप करके, 2400 हवन कर देने से ग्रह पीड़ा शान्त हो जाती है।

गायत्री मन्त्र बहुत ही सरल, सात्विक, सर्वत्र प्रभावी, समर्थ और सहज रूप से साध्य मन्त्र है। दैनिक चर्या के रूप में यदि स्नान करके इसकी एक माला प्रतिदिन जप ली जाय, तो भी बड़ा सुख मिलता है। तन, मन, धन के संकटों को दूर करके सुख शान्ति प्रदान करने में यह मन्त्र अतुलनीय है।

 

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