ज्योतिषशास्त्र : मन्त्र आरती चालीसा

घण्टाकर्णी यक्षिणी साधना विधि, सिद्धि मन्त्र एवं प्रभाव

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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यक्षिणी कौन एवं क्या हैं ?

यक्षिणी, कोई राक्षसी नहीं अपितु यक्ष जाति की देवी हैं। यक्षिणी का नाम भले ही भयानक प्रतीत होता हो, परन्तु ये शीघ्र प्रसन्न होने वाली व अनेकों सिद्धियों की प्रदाता देवी है। यदि आस्था एवं विधि विधान पूर्वक इन्हें सिद्ध कर लिया जाय, तो कामनापूर्ति में कोई संशय नहीं रहेगा।

मनुष्य के सभी संकट चाहे वे दैहिक, दैविक, भौतिक ही क्यों न हों श्रद्धाभाव से यक्षिणी को प्रसन्न कर दूर किये जा सकते हैं। यक्षिणी के विषय में ऐसी मान्यता भी है कि वह अपने आराधक का संकट दूर करके उसकी सहायता अवश्य करती है। नियमानुसार अनुष्ठान करके कोई भी व्यक्ति इनसे लाभान्वित हो सकता है। किन्तु अनुष्ठान के लिए शुभ मुहूर्त तथा अपेक्षित विधि आवश्यक है। एक प्रचलित यक्षिणी कल्प के अनुसार, प्रमुख यक्षिणी देवियों की संख्या 24 है। निम्नवत चन्द्रिका यक्षिणी साधना विधि, मन्त्र एवं फल प्रभाव दिया गया है।

 

 

घण्टाकर्णी यक्षिणी साधना विधि :

 

सिद्धि मन्त्र : -  "ऐं घंटेपुर क्षोभय क्षोभय राजा नाम क्षोभय क्षोभय भगवती गंभिरः श्वरप्लीं स्वाहा"।

 

जप विधि :-  इन देवी को घण्टे की ध्वनि अति प्रिय है। अतः इसकी साधना में घण्टे का प्रयोग अनिवार्य है। जिस समय इसकी उपासना की जाय, घण्टे का अविराम गति से बजते रहना आवश्यक होता है।

अविराम घण्टा ध्वनि के मध्य उक्त मन्त्र के बीस हजार जप करने चाहिए। जप क्रिया पूर्ण हो जाने के पश्चात दशांश हवन करना विधान सम्मत है।

 

प्रभाव :-  घण्टाकर्णी यक्षिणी की कृपा से साधक परमप्रतापी एवं शक्ति सम्पन्न हो जाता है। फिर आसपास तो क्या, समस्त नगर उससे भयभीत रहता है। उसे हानि पहुंचाने, आतंकित करने अथवा आघात पहुंचाने की कोई व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकता। उसका आतंक सर्वत्र व्याप्त हो जाता है।

 

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