7 साल पूर्व
भगवान् विष्णु द्वापर युग में कृष्णावतार के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे। मानव का रूप धारण करके भगवान विष्णु ने धरती पर कृष्ण रूप में जिस विद्वता, रणकौशल, नीतिकौशल एवं अध्यात्मबोध का परिचय दिया था, वह किसी देवअवतार के माध्यम से ही संभव है। श्रीकृष्ण जी की लीलाओं, विद्वता, रणकौशल, नीतिकौशल एवं अध्यात्मबोध एवं साक्षात् ईश्वर मानकर उनकी पूजा स्तुति के प्रसंग श्रीमदभागवत, भागवद्गीता, महाभारत जैसे ग्रन्थों में विस्तृत रूप में मिलते है।
सिद्ध संतों, महात्माओं, ब्रह्मर्षियों एवं मन्त्राचार्यों ने अपने जीवन दर्शन व अनुभव से यह प्रमाणित किया है कि श्रीकृष्ण का विधि विधान व आस्था से किया गया स्मरण, ध्यान, जप व पूजन साधक हेतु निश्चित ही अभीष्ट फलदायी सिद्ध होता है।
श्रीकृष्ण के मन्त्र जप साधना के विधिवत् अनुष्ठान हेतु एक लाख जप एवं उनके दशांश अर्थात 10 हजार का हवन का किया जाना आवश्यक होता है। आमजन अथवा साधक प्रतिदिन की चर्या के रूप में स्नानोपरान्त शुद्ध होकर पूजन के समय अपनी सुविधानुसार 1, 3, 5 मालायें जप सकता है। प्रातः पूजन समय के अतिरिक्त भी किसी अन्य समय में साधक शान्त चित्त से मन्त्र जप कर लाभ प्राप्त कर सकता है। नीचे कुछ ऐसे मन्त्र दिये जा रहे हैं, जिनका आस्थापूर्वक जप करने से श्री कृष्ण जी का स्नेह, आशीष व परमसुख प्राप्त किया जाना संभव है। साधक इनमें से किसी भी एक मन्त्र को सुविधानुसार चुनकर उसकी साधना कर सकता है।
मन्त्र निम्न प्रकार हैं :
♦ ॐ कृः।
♦ ॐ कृष्ण।
♦ ॐ क्लीं कृष्ण।
♦ ॐ गोपाल स्वाहा।
♦ ॐ क्लीं कृष्णाय।
♦ ॐ कृष्णाय नमः।
♦ ॐ क्लीं कृष्णाय क्लीं।
♦ ॐ कृष्णाय गोविन्दाय।
♦ ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।
♦ ॐ बालवपुषे कृष्णाय स्वाहा।
♦ ॐ श्रीं ह्नीं क्लीं कृष्णाय।
♦ ॐ श्री कृष्णाय परब्रह्मणे नमः।
♦ ॐ दधिभक्षणाय स्वाहा।
♦ ॐ क्लीं ग्लौं श्यामलांगाय नमः।
♦ ॐ बाल वपुषे क्लीं कृष्णाय स्वाहा।
♦ ॐ ह्नीं ह्नीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नमः।
कृष्ण गायत्री मन्त्र :
ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्।
उक्त वर्णित समस्त मन्त्र अभीष्ट फलदायक हैं। इन मन्त्रों को दैनिक पूजन में अथवा निश्चित संख्या में अथवा संकल्पबद्ध अनुष्ठान के रूप् मे जप कर अभीष्ट लाभ प्राप्त किया जा सकता है। आस्था प्रत्येक स्थिति में आवश्यक है।
भगवान् विष्णु का द्वादश अक्षर मन्त्र :
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
यह भगवान् विष्णु का महामन्त्र है। इस मन्त्र को विष्णु भगवान के द्वादश अक्षर मन्त्र नाम से ख्याति प्राप्त है। इस मन्त्र की जप साधना के प्रभाव का वर्णन यहां संभव नहीं है। इस मन्त्र की सिद्धि प्राप्ति के पश्चात साधक के लिए कुछ भी असाध्य नहीं रह जाता। इसका मन्त्र का जप करने के लिए कोई निषेध अथवा प्रतिबंधित नियम नहीं हैं। स्त्री व पुरुष, ब्राह्मण अथवा शूद्र कोई भी, कभी भी, रास्ता चलते भी, इसका जप कर सकता है। यह मन्त्र त्रिकाल में सत्य और फलदायी है।
मन्त्रविधान के अनुसार यदि इस मन्त्र को सम्पूर्ण विधि विधान पूर्वक जपकर सिद्ध कर लिया जाय तो सम्बंधित साधक के लिए असम्भव भी सम्भव हो जाता है। किन्तु यदि कोई व्यक्ति किसी भी परिस्तिथि के कारणवर्ष इसका विशेष रीति से जप नहीं कर सकता है, तो वैसे ही खाली समय में सदैव, अेण् प्रतिदिन प्रातः स्नान के पश्चात् 10-5 मिनट तक किसी शान्त, एकान्त व शुद्ध स्थान पर बैठकर इस मन्त्र की 1, 3, 5, 7 जैसी सुविधा हो, माला जप सकता है। इसमन्त्र का सहज भाव से किया गया दैनिक जप भी असामान्य प्रभाव दिखलाता है।
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