6 साल पूर्व
प्राचीन ऋषि मुनियों व आचार्यों ने सिद्धि विशेष के लिए माला विशेष का नियम बनाया है। मन्त्र जप में, जप माला पर समस्त जपक्रिया एवं उसकी सफलता निर्भर रहती है। मन्त्र जप में जपों की गणना हेतु तो माला का उपयोग होता ही है अपितु विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ती हेतु अभीष्ट इष्ट से सम्बंधित अभीष्ट पदार्थों से निर्मित मालाएं प्रयुक्त होती हैं जिनके उचित समंजन से साधक को इष्ट प्राप्ति मे सफलता सुनिश्चित हो जाती है।
माला के प्रकार
मन्त्रोच्चारण की गणना हेतु प्राचीन ऋषि मुनियों ने तीन प्रकार की मालायें आविष्कृत की थीं। वहीं आज तक प्रयुक्त हो रही हैं-
♦ कर माला, ♦ वर्ण माला, ♦ मणि माला।
♦ कर माला
करमाला कोई माला न होकर एक प्रकार की माला जपने की विधि है। अंगुलियों को परस्पर सटाये हुए, हथेली की ओर कुछ झुकाकर उनके पोरों पर एक निश्चित क्रम से जप करने की क्रिया को करमाला पर आधारित कहा जाता है। इस क्रिया में पर्वक्रम पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है। जब मन्त्र जप हजारों लाखों की संख्या में किये जाने हों तो उनकी गणना इससे संभव नहीं हो पाती। अतः दीर्घ साधना के लिए करमाला उपयुक्त नहीं होती है। इसका प्रयोग छोटी संख्या में जप करने हेतु अधिक होता है। इस माध्यम से की जाने वाली जप क्रिया निम्न रूप से निर्देशित की गयी है-
आरम्भ्यानामिका मध्यं पर्वान्युक्तान्यनुक्रमात्।
तर्जनीमूलपर्यन्तं जपेद्दशसु पर्वसु।।
मध्यमांगुलिमूले तु यतपर्वद्वितयं भवेत्।
ते वे मेरुं विजानीयज्जाप्येतं नातिलंघयेत्।
♦ वर्ण माला
सन्तकुमार तन्त्र, विशुद्धेश्वर तन्त्र, वैशम्पायन संहिता आदि ग्रन्थों में वर्णमाला की उपयोग विधि पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।
अ से क्ष तक के वर्ण समूह को वर्णमाला कहते हैं। स्वर व व्यंजनों के इस समूह में 51 वर्ण होते हैं। वर्णमाला की उपयोग विधि में क्ष को सुमेरु मानकर शेष 50 वर्णों पर क्रमिक रूप से मन्त्र गणना करने का निर्देश है। यह विधि अपनी जटिलता के कारण व्यापक सिद्ध नहीं हो सकी। आज कल के इस युग में व्यस्तता एवं अशांति भरे वातावरण में कदाचित् ही कोई साधक इसका प्रयोग कर पाये। दीर्घ साधना वाले मन्त्रजप में वर्ण माला असुविधाजनक सिद्ध होती है।
♦ मणि माला
समस्त मालाओं में सर्वाधिक प्रचलित और व्यवहारिक मणिमाला ही है। इसका प्रयोग जप साधना में तो होता ही है, अपितु महिलाओं के श्रृंगार हेतु, अलंकार रूप में भी इसका उपयोग खूब होता है। महिलाओं में प्रचिलित आभूषण जैसे चन्द्रहार एवं कण्ठश्री, माला के ही विकसित एवं परिष्कृत रूप हैं। वस्तुतः श्रृंगार कर्म हेतु माला की उपयोगिता एवं शोभा सर्वव्यापी है। समाज के समस्त वर्गों में हड्डी से लेकर हीरे तक की माला धारण का प्रचलन बखूबी है। मन्त्र साधना में प्रयुक्त होने वाली मालायें दूसरे पूजन योग्य पदार्थों जैसे तुलसी, रुद्राक्ष, कमलगट्टा, मोती, स्फटिक, चांदी, सोना, शंख, पुत्रजीवा, राजमणि, वैजयन्ती अथवा रुद्राक्ष आदि के दानों से निर्मित की जाती है। ये मालाएं भी धारणीय होती हैं एवं एक अलग रूप में ही धारक को शोभित भी करती हैं।
इन पूजन योग्य पदार्थों से बनायी गयी मालायें मन्त्रजप में प्रयोग भेद से विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती है। चूंकि यह माला दानों को एक सूत्र में पिरोकर तैयार की जाती हैं अतः इसी कारण इन्हें मणिमाला कहा गया है।
प्रभाव भिन्नता की दृष्टि से इसका प्रयोग इस प्रकार किया जाता है-
• धनोपलब्धि हेतु मूंगा की माला।
• शत्रुनाश के लिए कमलगट्टे की माला।
• गणेशजी की पूजा में हाथीदांत की माला।
• पापशमन हेतु कुश की जड़ से बनी हुई माला।
• सन्तानलाभ हेतु पुत्रजीवा माला।
• अभीष्ट सिद्धि अथवा पुष्टिकर्म हेतु चांदी की माला।
• वैष्णव मत की साधना अर्थात राम भक्ति, कृष्णभक्ति एवं विष्णु भक्ति हेतु तुलसीमाला।
• यक्षिणीसाधना अथवा भैरवी विद्या की सिद्धि हेतु, मूंगा, सोना, शंख, मणि अथवा स्फटिक की माला। इस प्रयोग में रुद्राक्ष, पद्मबीज और पुत्रजीवा माला का निषेध है।
• देवी साधना जैसे त्रिपुर सुन्दरी अथवा अन्य किसी दैवीय अवतार की साधना हेतु लाल चन्दन अथवा रुद्राक्ष की माला।
माला का प्रभाव
प्राचीन ग्रंथों में मालाओं का वर्गीकरण और विवेचन करते हुए बताया गया है कि, किसी भी मन्त्र को यदि उंगलियों पर जपा जाए तो सामान्य फल अर्थात एकगुणा प्राप्त होता है। किन्तु मन्त्र यदि उंगली के पर्वों पर जपा जाय, तो उसका प्रभाव सामान्य से आठ गुणा बढ़ जाता है। यदि वही मन्त्र पुत्रजीवा माला पर जपा जाए तो प्रभाव दस गुणा बढ़ जाता है। शंखमाला मन्त्र जप के प्रभाव में सौगुणा वृद्धि कर देती है,जबकि मूंगामाला मन्त्र जप प्रभाव में हजारगुणा अधिक वृद्धि कर देती है, जबकि मणि अथवा किसी अन्य रत्न की माला उस मन्त्र जप प्रभाव में दस हजार गुणा अधिक वृद्धि कर देती है। मुक्तामाला से तो मन्त्र जपफल में लाखगुणी अधिक वृद्धि हो जाती है। जबकि कमलगट्टे की माला मन्त्र जप फल को दस लाख गुणा एवं सोने के दानों से बनी माला उसी मन्त्र जप प्रभाव में करोड़ गुणा अधिक वृद्धि कर देती है। कुश नामक घास की जड़ से निर्मित माला का प्रभाव तो अचंभित कर देने वाला है। महर्षियों के अनुभवानुसार कुश नामक घास की जड़ से किया गया मन्त्रजप, सामान्य की अपेक्षा सौ करोड़ गुणा अधिक फल प्रदान करता है।
उक्त वर्णित विभिन्न मालाओं के मन्त्र जप प्रभाव का फलादेश हमने पढ़ा। महर्षियों ने रुद्राक्ष के सम्बन्ध में यह विवेचन दिया कि रुद्राक्ष निर्मित माला से यदि साधक मन्त्र जप करें तो उसे अनन्त फल की प्राप्ति होती है। चूंकि रुद्राक्ष विश्व का एकमात्र ऐसा दाना है, जिसमें समस्त प्रकार की सिद्धि, समृद्धि एवं शक्ति अर्जित करने का सामर्थ्य है। रुद्राक्ष के सन्दर्भ में ऐसी धारणा है कि रुद्राक्ष की माला अथवा उसका दाना ही धारण करने वाले व्यक्ति में अनेक प्रकार की अलौकिक शक्तियां स्वय ही संचित हो जाती हैं।
माला में मणियोँ की संख्या के विषय में अनेकों मत हैं। कुछ मन्त्र शास्त्रियों के अनुसार 15, 27, 54 मणियों की माला मन्त्र जप हेतु उचित रहती है। परन्तु माला 108 दानो की होनी चाहिए यह सर्वत्र मान्य है। 108 दानों की माला में एक अतिरिक्त दाना विशेष रूप से प्रयुक्त किया जाता है जिसे सुमेरु कहते हैं। मन्त्र जप के समय, जप को सुमेरु से प्रारम्भ किया जाता है तत्पश्चात माला के अन्य 108 दाने पूरे किये जाते हैं। माला पूरी होने पर सुमेरु के फिर से आने पर उसका उल्लंघन न करके जापक को माला को उलटकर विपरीत दिशा में जपना प्रारम्भ कर देना चाहिए । मंत्र जप जब समाप्त हो जाएँ तब सुमेरु को आंखों एवं माथे से लगाएं व देवता से क्षमा प्रार्थना करें ऐसा विधान माला जप हेतु नियत है।
मोती, मूंगा, कमलगट्टा, रायमणि, पुत्रजीवा, शंश अथवा रुद्राक्ष, कोई भी माला हो, उसमें 108 दाने तथा सुमेरु का होना आवश्यक रहता है। रुद्राक्ष की माला सर्वाधिक पवित्र, प्रभावशाली और विज्ञानसम्मत है। इसके अभाव में तुलसी अथवा कुशमूल की माला भी श्रेष्ठ मानी जाती है। माला चाहे जैसी हो, उसका शुद्ध एवं विधिवत् रूप से बना होना परम आवश्यक है। नकली वस्तु से बनायी गयी, छिन्न, निकृष्ट, दूषित अथवा विधि विरुद्ध बनी हुई माला का प्रयोग अभीष्ट सिद्धि में बाधक सिद्द होता है।
मन्त्र जप हेतु बनाई गई माला में 108 दानों की संख्या का महत्व कई कारणों पर आधारित है। यदि कोई व्यक्ति प्रतिश्वास एक बार मन्त्र जपे एवं एक दाना सरकाये तो एक घण्टे में 900 एवं 12 घण्टे में 10,800 बार जप हो जायेगा। उपांशु जप के नियमानुसार 108 माला जप करने का फल 10,800 मन्त्र जप के सामान होता है।
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार समस्त 27 नक्षत्रों के समस्त 4 चरणों का स्पर्श करने के लिए 27 × 4 = 108 बार जप करना चाहिए। इससे अखिल ब्रह्माण्ड से साधक का सम्पर्क हो जाता है। ग्रह, निवार्ण मन्त्र, नवरात्रि के दिन आदि अनेक सन्दर्भ 9 के अंक से सम्बद्ध हैं। भारतीय संस्कृति में 9 का अंक ब्रह्म का प्रतीक है। अनेकों धार्मिक व पौराणिक प्रसंग 18 या 1,800 या 18,000 की संख्या में हैं जिनका मूल उत्स यही 9 का अंक है। अतः 9 निर्मित 108 दानों वाली माला को जप के लिए अनुकूल कहा गया है।
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