8 साल पूर्व
योग, तन्त्र, मन्त्र, नाद एवं नृत्य के आदि आचार्य भगवान् शिव को ही माना गया हैं। शाबर मन्त्रों के आदि रचियता अथवा जनक भगवान् शिव ही हैं। शाबर मंत्रो की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रचलित है कि, एक बार पार्वतीजी व भगवान शिव पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकले, पृथ्वी वासियों के दुःख दर्द देखकर पार्वतीजी का मन व्याकुल हो उठा। पृथ्वी वासियों जीवन के कष्ट व क्लेश दूर करने के लिए उन्होंने भगवान शिव से आग्रह किया। पार्वती जी के आग्रह पर भगवान शिव ने जनसामान्य के लिए कुछ ऐसे सरल व सुसाध्य मन्त्रों की रचना की जिनका जप करके साधक कष्ट मुक्त हो सकें। वस्तुतः इस प्रकार से शाबर मन्त्रों की उत्पत्ति हुई। प्राचीन ऋषि मुनि शाबर मन्त्रों के प्रयोग से आमजन के कष्ट निवारण किया करते थे। ये मन्त्र इतने सरल है व इनको सिद्ध करना भी इतना सरल है की कोई भी आमजन बड़ी आसानी से इन्हे सिद्ध कर लाभान्वित हो सकता है। शाबर मन्त्रों की जप साधना वैदिक मन्त्रों की अपेक्षा सरल है। अक्सर देखा जाता है कि छोटे बड़े साधु संत अथवा फकीर, इन मन्त्रों के प्रयोग से लोगों को चमत्कृत एवं उपकृत करते रहते हैं। शाबर मन्त्र प्रबल रूप से प्रभावी एवं अचूक है।
भाषा और व्याकरण की दृष्टि से शाबर मन्त्रों की साधना सहज व असन्दिग्ध है। उच्चारण भेद से मन्त्र जप से उत्पन्न ध्वनि की भिन्नता हम सहज ही अनुभव कर सकते हैं। इसी ध्वनि भिन्नता के आधार पर हमें मन्त्र की प्रभाव भिन्नता देखने को मिलती है। शाबर मन्त्रों की उपयोगिता, विचित्र शब्दावली एवं प्रभावात्मकता देखकर जहां कौतूहल होता है, वहीं मन में उनके प्रति आस्था भी उत्पन्न होती है। नियमानुसार की गयी मन्त्र साधना का प्रभाव आज भी स्पष्ट देखा जा सकता है।
शाबर मन्त्रों की साधना में विधि विधान, बाह्याचार एवं कर्म काण्ड की बाध्यता एवं जटिलता नहीं है। पढ़ने सुनने में ये अटपटे लगते हैं, परन्तु इनकी प्रभाव शक्ति इतनी प्रबल व तीव्र हैं कि बड़े बड़े मन्त्र इनके सामने तुच्छ हो जाते हैं। शिवजी द्वारा रचित शाबर मन्त्रों के पश्चात, उन मन्त्रों के आधार पर कुछ दूसरे शिवभक्त महर्षियों, सन्त-महात्माओं ने भी अलग अलग विचार व उद्द्श्योँ को लेकर अनेकों उसी प्रकार के ही मन्त्रों की रचना की। नाथ सम्प्रदाय के समय कालीन ऐसा बहुत से ऋषि मुनियों ने किया एवं उसके पश्चात भी इस प्रकार के मन्त्रों की रचना की जाती रही। कितने ही सिद्ध ऋषियों ने अपने तपोबल से, स्वनिर्मित मन्त्रों को शक्ति प्रदान की। फलतः आज विपुल संख्या में शाबर मन्त्र उपलब्ध हैं। ये सभी भगवान् शिव द्वारा रचित नहीं हैं; उनके भक्तों द्वारा परवर्ती काल में भी बहुत से मन्त्र रचे गये हैं। प्रभाव क्षमता में ये मन्त्र भगवान शिव द्वारा रचित मन्त्रों से कुछ ही कम प्रभाव देते हैं परन्तु हैं ये सब समान ही। शाबर मन्त्रों की विशिष्टता यह है कि इन मन्त्रों को कोई भी, कभी भी, कहीं भी जपकर सिद्ध कर सकता है। प्रायः हम देहातों में निरक्षर लोगों को भी चमत्कारिक झाड़ फूंक करते देखते हैं। वह सब इन्हीं शाबर मन्त्रों का प्रभाव ही है। दरिद्र, असभ्य कहे जाने वाले फकीर एवं दूसरी छोटी जातियों के लोग वस्तुतः किसी न किसी शाबर मन्त्र की सिद्धि प्राप्त हैं एवं उसका प्रयोग करके कभी कभी सभ्य, शिक्षित वर्ग को अचंभित कर देते हैं।
शाबर मन्त्र सहस्रों शताब्दियों से अनगिनत व्यक्तियों द्वारा अनुभूत किये गए हैं। इनकी साधना आमजन को वहीं सम्बल प्रदान करती है, जो एक देवता की साधना से प्राप्त किया जा सकता है। जीवन की किसी भी समस्या का, शाबर मन्त्र के जप से निश्चित एवं तीव्र समाधान किया जा सकता है।
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