5 साल पूर्व
भगवान शिव का पंचाक्षर मन्त्र ‘नमः शिवाय’ है | जिस प्रकार सभी देवताओं में देवाधिदेव महादेव सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार भगवान शिव का पंचाक्षर मन्त्र ‘नमः शिवाय’ भी श्रेष्ठ है। इसी मन्त्र के आदि में प्रणव अर्थात ॐ लगा देने पर यह षडक्षर मन्त्र ‘ॐ नम: शिवाय’ हो जाता है। वेद अथवा शिवागम में षडक्षर मन्त्र स्थित है, किन्तु संसार में पंचाक्षर मन्त्र को मुख्य माना गया है। यह सबसे पहला मन्त्र है। भगवान शिव का कथन है– यह सबसे पहले मेरे मुख से निकला; इसलिए यह मेरे ही स्वरूप का प्रतिपादन करने वाला है। पंचाक्षर तथा षडक्षर मन्त्र में वाच्य-वाचक भाव के द्वारा शिव स्थित हैं, शिव वाच्य हैं और मन्त्र वाचक। यह पंचाक्षर व षडक्षर मन्त्र शिववाक्य होने से सिद्ध है, अतः मनुष्य को नित्य पंचाक्षर मन्त्र का जप ॐ के साथ करना चाहिए। सांसारिक बंधनो में बंधे हुए मनुष्यों के हित की कामना से स्वयं भगवान शिव ने ‘ॐ नम: शिवाय’ इस आदि मन्त्र का प्रतिपादन किया। इसे ‘पंचाक्षरी विद्या’ भी कहते हैं।
♦ पंचाक्षर मन्त्र की महिमा :-
पंचाक्षर मन्त्र अल्पाक्षर एवं अति सूक्ष्म है किन्तु इसमें अनेक अर्थ भरे हैं। यह मन्त्र भगवान शिव का हृदय, शिवस्वरूप, गूढ़ से भी गूढ़ और मोक्ष ज्ञान देने वाला है। यह मन्त्र समस्त वेदों का सार है। यह अलौकिक मन्त्र मनुष्यों को आनन्द प्रदान करने वाला और मन को निर्मल करने वाला है। पंचाक्षर मन्त्र मुक्तिप्रद–मोक्ष देने वाला है। यह शिव की आज्ञा से सिद्ध है। पंचाक्षर मन्त्र नाना प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है। इस मन्त्र के जाप से साधक को लौकिक, पारलौकिक सुख, इच्छित फल एवं पुरुषार्थ की प्राप्ति हो जाती है। यह मन्त्र मुख से उच्चारण करने योग्य, सम्पूर्ण प्रयोजनों को सिद्ध करने वाला व सभी विद्याओं का बीजस्वरूप है। यह मन्त्र सम्पूर्ण वेद, उपनिषद्, पुराण और शास्त्रों का आभूषण व समस्त पापों का नाश करने वाला है।
‘शिव’ यह दो अक्षरों का मन्त्र ही बड़े-बड़े पातकों का नाश करने में समर्थ है और उसमें नम: पद जोड़ दिया जाए, तब तो वह मोक्ष देने वाला हो जाता है।
♦ पंचाक्षर मन्त्र के ऋषि, छन्द, देवता और ध्यान :-
पंचाक्षर मन्त्र के ऋषि वामदेव, छन्द पंक्ति व देवता शिव हैं। आसन लगाकर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके इस मन्त्र का जप करना चाहिए। रुद्राक्ष की माला से जप का अनन्तगुणा फल मिलता है। स्त्री, शूद्र आदि सभी इस मन्त्र का जप कर सकते हैं। इस मन्त्र के लिए दीक्षा, होम, संस्कार, तर्पण और गुरुमुख से उपदेश की आवश्यकता नहीं है। यह मन्त्र सदा पवित्र है |
लिंगपुराण में कहा गया हैं ‘जो बिना भोजन किए एकाग्रचित्त होकर आजीवन इस मन्त्र का नित्य एक हजार आठ बार जप करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है’। इस मन्त्र के लिए लग्न, तिथि, नक्षत्र, वार और योग का विचार नहीं किया जाता। यह मन्त्र कभी सुप्त नहीं होता, सदा जाग्रत ही रहता है। अत: पंचाक्षर मन्त्र ऐसा है जिसका अनुष्ठान सब लोग सब अवस्थाओं में कर सकते हैं।
श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य, मुख्यतः पांच शब्दों का वर्णन हैं। न, म, शि, वा एवं य अर्थात् "नम: शिवाय"। अतः यह पंचाक्षर स्तोत्र शिवस्वरूप है। जो कोई शिव के समीप इस पवित्र पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान अथवा पाठ करता है वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पुर्वक आनन्दित निवास करता है |
|| श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्रम् ||
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय
तस्मै 'न' काराय नमः शिवायः ॥1॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय
नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय
तस्मै 'म' काराय नमः शिवायः ॥2॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषध्वजाय
तस्मै 'शि' काराय नमः शिवायः ॥3॥
वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य
मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वेश्वानर लोचनाय
तस्मै 'व' काराय नमः शिवायः ॥4॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय
तस्मै 'य' काराय नमः शिवायः ॥5॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिव सन्निधौ।
शिवलोक मवाप्रोगति शिवेन सह मोदते॥
|| इति श्रीमच्छड़राचार्य विरचितं शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ||
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