8 साल पूर्व
जन्म कुण्डली का पहला खाना सम्पूर्ण कुण्डली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग होता है। ज्योतिष भाषा में इस खाने को प्रथम भाव अथवा लग्न भाव भी कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य किसी भी जातक की जन्म कुण्डली में लग्न एवं लग्नाधिपति अर्थात लग्नेश की स्थिति को देख कर ही सम्बंधित जातक के रंग, रूप, शारीरिक गठन, आचरण, स्वभाव एवं स्वास्थ्य आदि के सम्बन्ध में विवेचना कर देते हैं। कुछ अनुभवी एवं ज्ञानी ज्योतिषाचार्य तो किसी भी जातक की आभा, मुखमण्डल, आदतें एवं व्यवहार को देखकर ही सम्बंधित जातक के जन्म लग्न का एकदम सटीक पता लगा लेते हैं।
किसी जातक की जन्म कुण्डली का फलादेश बहुत कुछ उस जातक की कुण्डली के लग्न भाव की राशि, लग्नेश एवं उसकी स्थिति, लग्न भाव में स्थित ग्रह, लग्न भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रह, ग्रहों की युति तथा लग्न भाव की दृष्टि आदि से प्रभावित होता हैं। लोक प्रकृति, भौगोलिक एवं सामाजिक स्थितियाँ भी सम्बंधित जातक के कुण्डली फलादेश को प्रभावित करती हैं।
यहां हम कर्क लग्न में जन्मे जातक का फलादेश प्रस्तुत कर रहे हैं -
कर्क लग्न :
कर्क लग्न में जन्म लेने वाले जातक प्रायः राजनेता, मंत्री, राज्याधिकारी, डाक्टर, व्यवसायी, नाविक, प्राध्यापक अथवा इतिहासकार आदि क्षेत्रों को अपनी जीविकोपार्जन का माध्यम बनाते हैं। इनकी वृश्चिक, मकर एवं मीन लग्न वाले जातकों से अच्छा मित्र भाव बना रहता है। इनका कोई भी कार्य धन के आभाव में नहीं रुकता। सामाजिक कार्यों में भी धन व्यय करने हेतु सदैव अग्रणी एवं तत्पर रहते हैं। ऐसे जातक आत्म विश्वास से परिपूर्ण एवं न्याय प्रिय होते हैं। इनकी मानसिक शक्ति बड़ी तीव्र एवं मजबूत होती है।
कर्क लग्न में जन्मे जातक प्रायः गौर वर्ण के ही होते हैं, किन्तु ग्रह स्थिति के कारण अपवाद स्वरुप श्याम वर्ण के भी हो सकते हैं। इनका कद मंझोला एवं सुगठित शरीर होता है एवं आगे के दांत कुछ बड़े आकार के होते हैं। इनका मुख देखने में सुन्दर होता है। ये जातक विलासी, गतिशील, परिवर्तनशील एवं चंचल प्रवृत्ति वाले होते हैं एवं इनका हृदय उदार, स्वच्छ एवं विशाल होता है। ऐसे जातक अत्यन्त कल्पनाशील एवं भावुक प्रवृत्ति के होते है एवं भावना के वेग में ये इतना बह जाते हैं कि अपना भला बुरा तक इन्हे नहीं सूझता। यात्रा करना एवं प्रकृति प्रेम इनके स्वभाव में होता है एवं ऐसे जातक नवीन तथा जलज वस्तुओं के प्रति विशेष रुचि रखने वाले होते हैं।
कर्क लग्न में जन्मे जातक अपना कार्य बड़ी मेहनत, चातुर्य, बुद्धिमत्ता, नीतिज्ञता एवं समय अनुसार करना पसंद करते हैं। ऐसे जातक को स्त्री वर्ग से विशेष हर्ष एवं लाभ प्राप्त होता है। इनका दाम्पत्य जीवन प्रायः सुखद नहीं होता किन्तु फिर भी ये अपनी पत्नी एवं संतानो पर जान छिड़कते हैं। कुण्डली में विवाह प्रतिबन्धक योग होने पर भी इन्हें काम सुख प्राप्ति के अवसर मिलते ही रहते हैं। कर्क लग्न में जन्मे जातको को उदर, हृदय, कफ, मूत्राशय सम्बन्धी रोगों व विकारों की सम्भावना बनी रहती है।
कर्क लग्न में जन्मे जातक की जन्म कुंडली में यदि लग्न भाव में मंगल-राहु ग्रह युति बनती है तो ऐसे जातक ओछेपन की प्रवृत्ति कायम कर लेते हैं। लग्न भाव में मंगल-राहु ग्रह युति इन्हें दरिद्री एवं उदर रोगी भी बना देती है। इनके लग्न में शनि सप्तमेश की स्थिति में होता है, जिस कारण शनि ग्रह प्रारम्भ में शुभ फल एवं बाद में अशुभ फल प्रदान करता है। बृहस्पति ग्रह से इन्हे शुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार के प्रभाव प्राप्त होते हैं। शुक्र एवं बुध ग्रह से इनको अशुभ फल प्राप्त होता हैं। कर्क लग्न में जन्मे जातक के लिए मंगल ग्रह सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करने वाला ग्रह समझा गया है।
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