ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

वृश्चिक लग्न के जातक का फलादेश

Sandeep Pulasttya

6 साल पूर्व

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जन्म कुण्डली का पहला खाना सम्पूर्ण कुण्डली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग होता है। ज्योतिष भाषा में इस खाने को प्रथम भाव अथवा लग्न भाव भी कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य किसी भी जातक की जन्म कुण्डली में लग्न एवं लग्नाधिपति अर्थात लग्नेश की स्थिति को देख कर ही सम्बंधित जातक के रंग, रूप, शारीरिक गठन, आचरण, स्वभाव एवं स्वास्थ्य आदि के सम्बन्ध में विवेचना कर देते हैं। कुछ अनुभवी एवं ज्ञानी ज्योतिषाचार्य तो किसी भी जातक की आभा, मुखमण्डल, आदतें एवं व्यवहार को देखकर ही सम्बंधित जातक के जन्म लग्न का एकदम सटीक पता लगा लेते हैं।

किसी जातक की जन्म कुण्डली का फलादेश बहुत कुछ उस जातक की कुण्डली के लग्न भाव की  राशि, लग्नेश एवं उसकी स्थिति, लग्न भाव में स्थित ग्रह, लग्न भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रह, ग्रहों की युति तथा लग्न भाव की दृष्टि आदि से प्रभावित होता हैं। लोक प्रकृति, भौगोलिक एवं सामाजिक स्थितियाँ भी सम्बंधित जातक के कुण्डली फलादेश को प्रभावित करती हैं। यहां हम वृश्चिक लग्न में जन्मे जातक का फलादेश प्रस्तुत कर रहे हैं-

 

वृश्चिक लग्न :

वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले जातक तानाशाहा, खनिज लवण सम्बंधित विशेषज्ञ, आलोचक अथवा ठग हुआ करते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में ऐसे जातकों को प्रायः सफलता मिल जाती है। ऐसे जातक स्वभाव से उग्र प्रवृत्ति वाले होते हैं। अपने विरुद्ध कही गई टिपण्णी से शीघ्र हीभड़क उठते हैं। स्वभाव से कुछ गरम तो होते है, परन्तु क्रूर एवं निर्दयी नहीं होते। प्रतिशोध की भावना इनमें कूट कूट कर समाहित रहती है। स्वार्थ पूर्ती हेतु ये शत्रु को भी अपना मित्र बनाने से नहीं चूकते। ऐसा जातक संगीत व नृत्य कलाओं में अभिरूचि रखने वाला, विश्वसनीय, नीतिज्ञ, विद्वान, गणितज्ञ, विचारशील, शंकालु प्रवृत्ति वाला, ज्योतिष विधा का ज्ञाता एवं धन का चातुर्य से संचय करने वाला होता है। इनका जनसम्पर्क एवं जान पहचान का दायरा बहुत विशाल होता है। वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले जातक का भाग्योदय 22, 24, 28 और 32वें वर्ष में होता है।

वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले जातक मंझोले कद एवं गठीली देह युक्त होते हैं। इनका वर्ण कुछ अधिक गोरा होता हैं। इनके नेत्रों में एक चमक प्रतीत होती है व इनके केश कुछ कम मात्रा में होते हैं। इनकी टाँगे, धड़ के अनुपात में छोटा आकार लिए होती हैं। इनके दांत सामान्य से कुछ अधिक बड़े होते हैं, जिस कारण इनका जबड़ा भी कुछ चौड़ा प्रतीत होता है।

ये संकीर्ण विचारों से युक्त होते हैं। अपवाद स्वरुप ही कोई वृश्चिक लग्न का जातक परोपकारी मिलता हैं। इनके विचारों में कोमलता का प्रमाण मिलने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं उठता।

धर्म के प्रति इनमें कोई आकर्षण नहीं होता, किन्तु दिखावे हेतु ये पूजा पाठ का ढोंग करने से भी पीछे नहीं रहते।

वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले जातक अत्यन्त झगड़ालू प्रवृत्ति वाले, संयम से विहीन, गलत विचारों से भरे हुए, दया धर्म की भावना से दूर, चतुर स्वभाव वाले एवं गुप्त रूप से दुष्कर्म जैसे घृणित अपराध करने वाले होते है। कर्क, वृष एवं मीन लग्न वाले जातकों से इनकी भली प्रकार से पटरी खाती है। इनको प्रायः कंठ, छाती, गर्मी, वायु एवं बवासीर जैसे रोगों से ग्रस्त होने की सम्भावना बनी रहती है। वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाले जातक को सूर्य, चन्द्रमा, मंगल एवं बृहस्पति ग्रह शुभ फल प्रदान करते हैं एवं बुध व शुक्र अशुभ फल प्रदान करने वाले होते हैं।

 

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