ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

कर्क लग्न के जातक हेतु मांगलिक दोष निवारण उपाय

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

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सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ऊर्जा का एक अलौकिक गतिशील भंवर है। बड़े बड़े ज्योतिषाचार्यों एवं ऋषि मुनियों ने यह सिद्ध किया है कि किस्मत का लिखा कभी नहीं मिटता। रामायण, महाभारत एवं शास्त्रों में पौराणिक घटनाक्रम के जो व्याख्यान उपलब्ध हैं, उनसे भी इस कथन को बल मिलता है। बहुतेरे ज्ञानी ज्योतिष भविष्य को खतरे से बचाने के लिये उपाय दर उपाय एवं टोटके करते रहे, परन्तु वे उस घटना को पूर्णतः बचा नहीं पाये। टोटके एवं उपायों के प्रभाव से हम भविष्य के घटनाचक्र को हम अपने अनुरूप बदल लेंगे एवं अपने कष्टों को दूर कर लेंगे, ऐसा सोचना अनुचित ही है। वस्तुतः सत्य यह है कि टोटके एवं उपायों के प्रभाव से भविष्य के घटनाचक्र से उत्पन्न होने वाले प्रभाव को कुछ कम या अधिक किया जा सकता है।

 

यहां हम कर्क लग्न की कुण्डली के अनुसार मंगली दोष निवारण हेतु कुछ टोटके एवं उपाय दे रहे हैं।

 

कर्क लग्न के जातक हेतु मांगलिक दोष निवारण :-

 

प्रथम अथवा लग्न भाव में मंगल ग्रह स्थित है :

उपाय :  सम्बंधित जातक यदि नित्य हनुमानजी का पूजन करे, कभी किसी से दान अथवा उपहार न लें, सोने की अंगूठी में मूंगा रत्न धारण करें, पति अथवा पत्नी तांबे की पॉलिश वाली चांदी के कड़े धारण करें तो मांगलिक दोष का निवारण होता है।

 

चौथे भाव में मंगल ग्रह स्थित है :

उपाय :  सम्बंधित जातक, यदि दक्षिण दिशा मुखी घर में न रहें, कभी किसी से दान अथवा उपहार न लें, कटुता एवं निन्दा से बचें, पति अथवा पत्नी तांबे की पॉलिश वाली चांदी के कड़े धारण करें तो मांगलिक दोष का निवारण होता है।

 

सप्तम भाव में मंगल ग्रह स्थित है :

उपाय :  सम्बंधित जातक यदि कुंवारी लड़कियों को मीठा खिलायें, आचरणहीनता से बचें, कटुता एवं निन्दा से बचें, पति अथवा पत्नी तांबे की पॉलिश वाली चांदी के कड़े धारण करें तो मांगलिक दोष का निवारण होता है।

 

अष्टम भाव में मंगल ग्रह स्थित है :

उपाय :  सम्बंधित जातक यदि लोहे से बचें, जंग लगे कील, चाकू, कांटे, तलवार एवं अन्य औजार आदि से दूर रहें, दूध का खूब सेवन करें, मिठाई स्वमं भी खायें एवं दूसरों को भी खिलाएं, सोने की अंगूठी में मूंगा रत्न धारण करें एवं अतिथियों को सौंफ एवं मिश्री खिलायें तो मांगलिक दोष का निवारण होता है।

 

 

साधारण तंत्र उपचार

मांगलिक दोष के निवारणार्थ प्राणायाम करते हुए गले के चक्र पर ध्यान लगाएं। चन्द्रमा की किरणों को बढ़ाने का उपाय करें। इससे रक्तिम किरणें सिन्दूरी एवं नारंगी हो जायेंगी और कर्म एवं भोग की प्राप्ति होगी।

 

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