5 साल पूर्व
माँ दुर्गा की नवशक्तियाँ का दूसरा स्वरुप ब्रह्मचारिणी का है | यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है | ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली है | कहा भी है वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ हैं | ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिमर्य एवं अत्यंत भव्य है | इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाये हाथ में कमण्डल रहता है | अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान् शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत तपस्या की थी इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हे तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया | माँ दुर्गा जी का यह दूसरा स्वरुप भक्तों व सिद्धों को अबैत फल देने वाला है | इसकी उपसाना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है | दुर्गा पूजन के दूसरे दिन इन्ही के स्वरुप की उपसाना की जाती है | इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है | इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है |
नैवैध में दूध, चीनी व नारियल चढ़ाएं | देवी की आराधना करने पर दीर्घायु व कार्य में विजय की प्राप्ति होती है |
ध्यान मन्त्र जप :-
दधाना कर पक्षाभ्यामक्ष - माला - कमंडलू |
देवी प्रसिदितुमयी, ब्रह्मचारिणीनुत्ताम ||
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