ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

नव दुर्गा का प्रथम स्वरुप - शैलपुत्री

Sandeep Pulasttya

5 साल पूर्व

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माँ दुर्गा अपने प्रथम स्वरुप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं | पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा | माता शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में सती के नाम से प्रजापति दक्ष के यहां उत्पन्न हुई थीं और भगवान् शंकर से उनका विवाह हुआ था | माँ शैलपुत्री वृषभ पर सवार हैं | इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित हैं | पार्वती एवं हैमवती भी इन्ही के नाम हैं | माँ शैलपुत्री दुर्गा का महत्व एवं शक्तियां अनंत हैं | नवरात्र पर्व पर प्रथम दिवस इनका पूजन होता है | इस दिन साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करके साधना प्रारम्भ करते हैं | इससे मन निश्छल होता है और काम क्रोध आदि शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है |

प्रसाद में गाय के दूध की खीर, घी और सिंघाड़े के आटे व आली की गरम पकोड़ी भेंट करें | इनके पूजन से साहस, बल, कुँवारी कन्या को योग्यवर, यश व स्वास्थ्य की प्राप्ति अवश्य होगी |

 

ध्यान मन्त्र जप :-

वांछित लाभाय, चन्द्रार्थ-कृत-शेखराम |

वृषारूढ़ा शूल धरां शैलपुत्री यशस्विनी ||

 

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