ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

पाद अथवा पाये के प्रकार, कुंडली में योग की पहचान एवं फलादेश

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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किसी जातक की कुण्डली विचार में उस कुंडली में स्थित योग अपना अलग ही महत्व रखते है। योग से तात्पर्य ग्रहों के कुछ विशेष जोड़ है अर्थात् ग्रह जब विशेष परिस्थिति में कुछ खास योग बनाते हैं तो ऐसी स्थिति में शुभ अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं। घर में बालक के जन्म होने पर नामाक्षर जानते समय ज्योतिषी से यह भी पूछा जाता है कि बालक किस पाये अथवा पाद में जन्मा है। यहां पाद अथवा पाये योगों के फलित का विवेचन किया जा रहा है-

सम्पूर्ण जन्म लग्न कुण्डली के बारह भावों को चार भागों में बाँटा गया है। प्रत्येक भाग एक पाया  अथवा पाद कहलाता है। इन चारों पायों को धातु के अनुसार विवेचित किया जाता है जैसे- चाँदी का पाया, ताँबे का पाया, सोने का पाया एवं लोहे का पाया।

चन्द्रमा ग्रह कुण्डली के जिस भाव में स्थित हो, उसके अनुसार ही पाया जाना जाता है। धातु सम्बन्धी नामकरण सहित चारों पायों अथवा पादों का विवेचन निम्न प्रस्तुत है-

 

चाँदी का पाया :

ज्योतिषाचार्यों की धारणा अनुसार यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा ग्रह यदि दूसरे, पांचवें अथवा नवें भाव में स्थित होता है, तो जातक के पाद अथवा पाये रजत अर्थात चांदी के समझे गए है।

चांदी के पाये में जन्मा जातक भाग्यवान समझा जाता है। अपनी श्रेष्ठता में चाँदी का पाया सर्वोत्तम है।

 

ताँबे का पाया :

ज्योतिषाचार्यों की धारणा अनुसार यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा तृतीय, सप्तम अथवा दशम भाव में स्थित होता है, तो जातक के पाद अथवा पाये ताम्र अर्थात ताँबे के के समझे गए है। 

ताँबे के पाये में जन्मा जातक अच्छा व शुभ समझा जाता है। श्रेष्ठता के तारतम्य में तांबे के पाए का क्रम दूसरा है, चांदी के पाये अपेक्षा यह कुछ हीन माना गया है।

 

सोने का पाया :

ज्योतिषाचार्यों की धारणा अनुसार यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा प्रथम, षष्टम अथवा एकादश ग्यारहवें भाव में स्थित होता है, तो जातक के पाद अथवा पाये सुवर्ण अर्थात सोने के समझे गए है। 

सोने के पाये में जन्मा जातक अच्छा नहीं समझा जाता है। श्रेष्ठतम क्रम में सोने के पाए का क्रम तीसरा है।

 

लोहे का पाया :

ज्योतिषाचार्यों की धारणा अनुसार यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा चतुर्थ, अष्टम अथवा द्वादशभाव में स्थित होता है, तो जातक के पाद अथवा पाये वज्र अर्थात लोहे के के समझे गए है।  

लोहे के पाये में जन्मा जातक अच्छा नहीं समझा जाता है। श्रेष्ठतम क्रम में लोहे के पाए का क्रम चौथा है।

 

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